बाज का पेड़ उत्तराखंड. Olk Tree In Hindi

Olk Tree In Hindi

हेलो दोस्तों स्वागत है आपका देवभूमि उत्तराखंड के आज के नए लेख में । आज की इसलिए के माध्यम से हम आप लोगों के साथ बांज का पेड़ ( olk Tree in Hindi ) के बारे में जानकारी देने वाले हैं। जैसा कि हम सभी लोगों को पता है कि उत्तराखंड में बांध का वृक्ष कितना अनमोल माना जाता है। बांज वृक्ष के कारण ही आज हमारी देवभूमि उत्तराखंड अपने आसित्वा को बनाया हुआ है। आज के इस लेख में हम आपको बाज वृक्ष के बारे में जानकारी एवं उत्तराखंड में बांध के पेड़ की प्रजातियों के बारे में जानकारी देने वाले हैं। आशा करते हैं कि आपको हमारा यह लेख पसंद आएगा। इसलिए इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ना।

बाज का पेड़ उत्तराखंड. Olk Tree In Hindi

उत्तराखंड में कई प्रकार के पेड़ पौधे पाए जाते हैं जैसे कि चीड़, देवदार, भोजपत्र, भीमल, साल, शीशम आदि। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इन सबसे अधिक उपयोग में आने वाला कीमती वृक्ष बांज का पेड़ है। यह अपने बहुमुखी उपयोग एवं ग्रामीण क्षेत्र की गतिविधियों से जुड़ा हुआ वृक्ष है। पहाड़ों में कृषि औजारों से लेकर घर की सुरक्षा के लिए बनाए गए बाड़े के लिए भी बांज की लकड़ी का उपयोग किया जाता है।

बांज का वृक्ष न केवल उत्तराखंड में ईंधन की कमी को पूरी करता है बल्कि उत्तराखंड के जल संरक्षण में बांज वृक्ष का योगदान काफी अधिक है। आज के समय में पहाड़ों में कई गांव ऐसे हैं जहां पानी के पर्याप्त साधन नहीं रहते हैं लेकिन यदि उसे गांव के समीप बांज के पेड़ मौजूद है तो उसे गांव में कभी भी पानी की कमी महसूस नहीं होती। क्योंकि बांज एकमात्र ऐसा वृक्ष है जो अपने जड़ों में पानी को समेट रहता है। और इस वृक्ष की सबसे अच्छी खासियत यह है कि यह जल संरक्षण में अपनी अहम भूमिका निभाती है।

पहाड़ों का जीवन है बांज का वृक्ष. Olk Tree In Hindi Uttarakhand

आज के समय में लोग भले ही अच्छी सुविधाओं और शहरों की और पलायन कर रहे हो। लेकिन जीवन का असली सुख आज भी उन्हें पुराने घरों में है जहां पर हम लोगों ने अपना बचपन बिताया है।

पहाड़ी गांव में आज के समय में कई जल स्रोत सूख गए हैं जिसका मुख्य कारण है बांज के वृक्षों की कमी एवं चीड़ जैसे पेड़ों की अधिक संख्या के कारण अधिकांश गांव वालें पानी की समस्या से जूंझ रहे हैं। बांज के वृक्ष अपने जड़ों में पानी को समाय रहते हैं। बांज के वर्षों में पानी की मात्रा भरपूर पाई जाती है। यह पर्वतीय क्षेत्र भूमि में नमी रखना एवं जल संसाधनों की पूर्ति करने और मिट्टी के कटाव को रोकने में अहम भूमिका निभाती है।

इसके अलावा बांज के पत्तियों का उपयोग जानवरों को चारे के रूप में भी दिया जाता है। बाज की लकड़ी सबसे मजबूत एवं दीर्घायु वाली मानी जाती है। इसलिए पहाड़ी किसानों द्वारा कृषि के अधिकांश यंत्रों में बांज की लकड़ी का उपयोग किया जाता है।

बांज के पेड़ की पत्तियां कंपोस्ट खाद बनाने के लिए भी उपयोग में लाई जाती है। जहां चीड़ के पेड़ की पत्तियां पहाड़ी खेतों को नुकसान पहुंचाते हैं। वहीं दूसरी और बांज वृक्ष की पत्तियां खेतों की उर्वरकता शक्ति को बढ़ाने में सहायता करती है। बांज के वृक्ष की पत्तियां और पालतू पशुओं के गोबर से बना खाद पहाड़ी खेतों के लिए अच्छी मानी जाती है।

विलुप्त हो रहा है उत्तराखंड में बांज का वृक्ष. about Olk Tree In Hindi

एक तरफ पहाड़ों में विकास के कार्य बढ़ रहे हैं तो दूसरी तरफ प्रकृति प्रकृति को नुकसान पहुंचाया जा रहा है। आज के समय में उत्तराखंड के दूरवर्ती गांव में नई सुख सुविधाओं की इच्छा रखने वाले लोग सड़कों का निर्माण करवा रहे हैं। जिसके लिए जंगलों की कटाई अधिकांश मात्रा में हो रही है। लेकिन ऐसी स्थिति में जहां बांज के वृक्षों की कमी पहले ही महसूस की जा रही है उसके बावजूद भी लोगों द्वारा बांज के पेड़ों की लगातार कटाई की जा रही है। जिससे बांज के वृक्षों की कमी तो हो ही रही है लेकिन आप धीरे-धीरे कई गांव में पानी की कमी भी महसूस की जा रही है। जिसका सबसे बड़ा कारण है जंगलों का कटाव और बांज के वृक्षों की कमी। बांज के वृक्षों की अधिक कटाई के कारण आज के समय में भी उत्तराखंड के कई गांव ऐसे हैं जो पानी की कमी से जूझ रहे हैं।

उत्तराखंड में बांज वृक्ष की प्रजातियां. Types of Olk Tree In Hindi

वैसे तो उत्तराखंड में बांज वृक्ष की कई प्रजातियां पाई जाती है लेकिन इन सभी बांज के वृक्षों की या वृक्षों के समूह को बांज का वृक्ष की संज्ञा दी जाती है। उत्तराखंड में बांज वृक्ष की प्रमुख प्रजातियां।

  • फलियात
  • बांज
  • रियाँज
  • तिलंज
  • बरस या खरू

दोस्तों यह था हमारा आज का लेख जिसमें हमने आपको बांज का वृक्ष के बारे में जानकारी दी। आशा करते हैं कि आपको बांज के वृक्ष के महत्व के बारे में जानकारी मिल गई होगी। यदि आपको यह लेख अच्छा लगा है तो अपने दोस्तों और परिवार के साथ जरूर साझा करें।

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