नमस्ते दोस्तों स्वागत है आपका देव भूमि उत्तराखंड के आज के नए लेख में। आज हम आप लोगों के साथ उत्तराखंड का लोक पर्व हरेला त्यौहार के बारे में जानकारी देने वाले हैं। आज के इस लेख में हम जानने वाले हैं कि उत्तराखंड का लोक पर्व हरेला त्यौहार क्यों मनाया जाता है और हरेला त्यौहार कब मनाया जाता है और क्या इसकी पौराणिक मान्यता है। आशा करते हैं कि आपको हमारा यह लेख जरूर पसंद आएगा इसलिए इस लेख को अंतर जरूर पढ़ना।
उत्तराखंड का लोक पर्व हरेला. Uttarakhand Ka Lokparv Harela
उत्तराखंड को लोक पर्वों का शहर भी कहा जाता है क्योंकि यहां पर विभिन्न प्रकार के लोक पर्व त्यौहार एवं मेले आयोजित किए जाते हैं। उत्तराखंड प्राकृतिक सौंदर्य का एक केंद्र है हमारी प्रकृति जब नई ऋतु में प्रवेश करती है तो उसकी खूबसूरती का अंदाजा लगाना काफी मुश्किल होता है। चारों तरफ हरियाली के साथ-साथ ऊंचे पहाड़ों और घाटियों में विभिन्न प्रकार के सुंदर सुंदर फूल खिले हुए होते हैं। पूरी प्रकृति हरे भरे पेड़ पौधों से सुसज्जित होती है जबकि किसानों की जो फसल है वह लहराती हुई पूरे खलिहान को खुशबू से महका देती हैं। उन्हीं लोक पर्वों में से एक है उत्तराखंड का हरेला पर्व जोकि पूरे वर्ष भर में तीन बार मनाया जाता है।
उत्तराखंड में लोकप्रभा रेला का बड़ा महत्व माना जाता है क्योंकि प्रकृति नएं ऋतु में प्रवेश करने के साथ किसानों की फसल में खास परिवर्तन देखने को मिलता है जिसकी खुशी में यहां के लोग हरेला पर्व मनाते हैं। हरेला पर्व का अर्थ हरियाली से है इस ऋतु के प्रवेश के दौरान पूरी प्रकृति हरी-भरी दिखने के साथ-साथ खूबसूरत लगती है।
हरेला पर्व कब मनाया जाता है. Harela Parv Kab Manaya Jata Hai
दोस्तों उत्तराखंड में विभिन्न प्रकार के लोग पर्व मनाए जाते हैं। जिन्हें किसी निश्चित समय में मनाए जाने का प्रावधान है। ठीक उसी तरह से हरेला पर्व कब मनाया जाता है इस प्रश्न का जवाब जाने के लिए भी बहुत से लोग उत्सुक है। उत्तराखंड की संस्कृति के बारे में जानना हर एक व्यक्ति की रूचि होती है। क्योंकि उत्तराखंड की संस्कृति राज्य को एक विशेष स्थान प्रदान करती है। बताना चाहेंगे कि हरेला पर्व वर्ष भर में 3 बार मनाया जाता है। सर्वप्रथम यह पर्व चैत्र मास में मनाया जाता है और दूसरा पर्व श्रावण मास में मनाया जाता है। जबकि लास्ट यानी कि तीसरा हरेला पर्व अश्विन मास में मनाया जाता है। इस तरह से हरेला पर्व पूरे वर्ष में 3 बार मनाया जाता है।
उत्तराखंड वासियों द्वारा श्रावण मास में पड़ने वाले हरेला पर्व को अधिक महत्व दिया जाता है क्योंकि सावन का महीना भगवान शिवजी का महीना होता है। सावन का मेला लगने से 9 दिन पहले एक टोकरी में सात प्रकार के अनाज बॉय जाते हैं। प्रतिदिन अनाज को सूरज की किरणों से बचाया जाता है जबकि पानी से सींचा जाता है जिसके फलस्वरूप वह हरेला पर्व के समय उग कर तैयार हो जाते हैं।
हरेला पर्व क्यों मनाया जाता है. Harela Parv Kyu Manay jata Haii
प्यारे पाठको जैसा कि हम आपको पहले भी बता चुके हैं कि हमारी प्रकृति जब नई ऋतु में प्रवेश करती है तो इसकी सुंदरता का अंदाजा लगाना काफी मुश्किल होता है। हमारी प्रकृति हरी-भरी दिखने के साथ-साथ खूबसूरत दिखती है। सृष्टि में विभिन्न प्रकार के फूल एवं पत्ते खिल जाते है। पेड़ पौधों में एक नई चमक देखने को मिलती है और किसानों की फसल नया रूप धारण कर चुकी होती है इसलिए उत्तराखंड वासी प्रकृति का शुक्रगुजार करने के लिए हरेला पर्व मनाते हैं। उत्तराखंड के लोगों द्वारा प्रकृति के नए रूप धारण करने के लिए एवं अच्छी फसल उगने के लिए भगवान से प्रार्थना करते हैं इसलिए उत्तराखंड में हरेला पर्व का बड़ा महत्व माना जाता है।
हरेला पर्व का इतिहास. Harela Ka Itihas
दोस्तों हरेला पर्व का इतिहास काफी पुराना है मुख्य रूप से यह पर्व स्थानीय लोगों के माध्यम से ही बनाए जाते हैं जो कि किसी खास समय एवं ऋतु के साथ किसी व्यक्ति विशेष से जुड़े हुए होते हैं। हरेला पर्व का इतिहास प्रकृति के नए रूप धारण करने से लेकर किसानों द्वारा की अच्छी फसल की कामना से जोड़ा जा सकता है। हरेला पर्व में सभी लोग अपने देवी देवताओं से एवं भगवान भोलेनाथ से घर में सुख समृद्धि के साथ-साथ अच्छी फसल की कामना करते हैं। इसलिए उत्तराखंड के लोगों द्वारा सावन मास में पढ़ने वाले हरेला पर्व को अधिक महत्व दिया जाता है।
हरेला कैसे मनाया जाता है. Harela Parv Kese Manaya Jata Hai
दोस्तों अभी तक तो हम हरेला पर्व के बारे में जान चुके हैं और हम यह भी जान चुके हैं कि हरेला पर्व पूरे वर्ष में 3 बार मनाया जाता है। चलिए अब यह भी जान लेते हैं कि हरेला कैसे मनाया जाता है।
यह पर्व खुशहाली और समृद्धि का प्रतीक होता है इसलिए उत्तराखंड वासियों द्वारा इस पर्व की शुरुआत सुबह स्नान करने से किया जाता है। हरेला पर्व से 9 दिन पहले ही सभी लोगों द्वारा अपने घरों में एक टोकरी में मिट्टी लेकर उसमें सात प्रकार के अनाज बोए जाते हैं जो कि हरेला पर्व के आने तक उग कर तैयार हो जाते हैं।
नौवें दिन इसकी गुड़ाई की जाती है और दसवें दिन यानी कि हरेला पर्व के दिन ऐसे काटा जाता है। विधि-विधान एवं नियम अनुसार घर के बुजुर्गों द्वारा सुबह पूजा पाठ करके हरेले को देवी देवताओं को चढ़ाया जाता है। घर के बुजुर्गों द्वारा सभी सदस्यों को हरेला लगाया जाता है और परिवार के अन्य सदस्यों द्वारा बुजुर्गों से आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है। आशीर्वाद देते समय घर के बुजुर्गों द्वारा विशेष प्रकार का लोक गीत गाया जाता है। इसी के साथ ही सभी लोग मिलकर भगवान से परिवार की खुशहाली के साथ सुख समृद्धि की कामना करते हैं।
दोस्तों इस तरह से उत्तराखंड में हरेला पर्व बड़ी ही आस्था और भक्ति भावना के साथ मनाया जाता है। यह दिन सभी लोगों के लिए बड़ा ही हर्ष और उल्लाश का का होता है। इस लिए पहाड़ों से शहरों तक यह पर्व बड़ी ही धूम धाम से मनाया जाता है।
दोस्तों यह था हरेला पर्व से जुड़ी जानकारी आशा करते हैं कि आपको यह लेख पसंद आया होगा। यदि आपको यह लेख पसंद आया है तो अपने दोस्तों और परिवार के साथ जरूर साझा करें।
हरेला पर्व F&Q
Q – हरेली का अर्थ क्या है।
Q – हरेला पर्व 2023
Q – हरेला उत्सव कहां मनाया जाता है
Q – हरेला पर्व का महत्व
यह भी पढ़ें –
- उत्तराखंड के प्रमुख बोलियां.
- उत्तराखंड राज्य परिचय.
- उत्तराखंड की राजधानी कहां है.
- उत्तराखंड के भोजन के व्यंजन
- उत्तराखंड के जिले
Harela festival (हरेला त्यौहार) is a traditional festival celebrated mainly in the Indian state of Uttarakhand, particularly in the Kumaon