नमस्ते दोस्तों जय देव भूमि उत्तराखंड. स्वागत है आपका हमारे ब्लॉग के आज के नए लेख में। आज हम आप लोगों के साथ कोटेश्वर महादेव मंदिर के बारे में जानकारी देने वाले हैं। कोटेश्वर महादेव मंदिर उत्तराखंड की प्रमुख मंदिरों में से एक है जो कि अपने पौराणिक तथा एवं मान्यताओं के लिए प्रसिद्ध है। देवभूमि उत्तराखंड के इस लेख में हम आपको कोटेश्वर मंदिर के बारे में जानकारी एवं उसके इतिहास की जानकारी साझा करेंगे।
कोटेश्वर महादेव मंदिर.Koteshwar Mahadev Temple
पवित्र कोटेश्वर महादेव मंदिर हिंदू धर्म के पवित्र मंदिरों में से एक है जोकि उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग में स्थित एक प्राचीन मंदिर के लिए जाना जाता है। मंदिर शहर से लगभग 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है जो कि भगवान शिव जी को समर्पित है। अलकनंदा नदी के किनारे पर स्थिति हम मंदिर एक गुफा के रूप में मौजूद हैं जोकि अपने ऐतिहासिक एवं पौराणिक महत्व को संजोया हुआ यह मंदिर हर वर्ष लाखों भक्तों को अपनी ओर आकर्षित करता है लेकिन खासतौर पर शिवरात्रि के दिन यहां पर दर्शनार्थियों की अत्यधिक संख्या देखने को मिलती है।
भगवान शिव जी के प्राचीन मंदिरों में से एक कोटेश्वर महादेव मंदिर का निर्माण लगभग 14वी शताब्दी का माना जाता है। लेकीन 16वीं एवं 17वीं शताब्दी में मंदिर का पुनः निर्माण किया गया था। इस प्राचीनतम मंदिर की मुख्य विशेषता यह है कि चार धाम यात्रा पर निकले ज्यादातर श्रद्धालु मंदिर को देखते ही दर्शन के लिए आगे बढ़ते हैं।
ऐतिहासिक कहानियों के आधार पर किवदंती है कि भगवान शिव जी ने केदारनाथ जाते समय इस पवित्र गुफा में साधना की थी। तभी से इस स्थान पर एक मूर्ति स्थित है जो कि प्राकृतिक रूप से निर्मित हो गई थी। गुफा के अंदर प्राचीन मूर्तियां एवं शिवलिंग के अलावा मां पार्वती और भगवान गणेश जी, हनुमान जी , और मां दुर्गा जी की मूर्ति विद्यमान है। कोटेश्वर महादेव मंदिर की मान्यता है कि केदारनाथ मंदिर के दर्शन करने से पहले यदि इस पवित्र गुफा के दर्शन किए जाते हैं तो दर्शनार्थियों को पाप से मुक्ति प्राप्त होती है।
कोटेश्वर मंदिर पौराणिक कहानी. Koteshwar Mahadev Temple Kahani
कोटेश्वर महादेव मंदिर जिसकी पौराणिक कहानी प्राचीन काल से जुड़ी हुई है। मान्यता है कि भगवान शिव जी ने भस्मासुर से बचने के लिए इस गुफा में कुछ समय व्यतीत किया। भस्मासुर ने शिवजी की आराधना करके एक विशेष वरदान प्राप्त किया था कि वह किसी के भी सर में हाथ रखकर उसे भस्म कर सकते हैं। और इसी वरदान आजमाने के लिए उन्होंने भगवान शिव जी को चुना। उसके बाद भगवान शिवजी जहां भी जाते भस्मासुर उनके पीछे-पीछे वहीं तक पहुंच जाते हैं। भस्मासुर से बचने के लिए भगवान शिव जी ने कोटेश्वर गुफा में प्रवेश किया और कुछ समय वहां पर विश्राम करने का निर्णय लिया। मान्यता है कि इस बीच भगवान विष्णु जी ने मोहिनी का रूप धारण करके भस्मासुर से संहार किया और पवन शिवजी की सहायता की जिसके पश्चात यहां पर भगवान शिव जी ध्यान अवस्था में रहे। इसलिए इस मंदिर का महत्व बड़ा ही खास माना जाता है।
कोटेश्वर महादेव मंदिर कैसे पहुंचे. Koteshwar Mahadev Mandir kese Pahuchen
दोस्तों कोटेश्वर महादेव मंदिर रुद्रप्रयाग शहर से मात्र 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है एवं सड़क के समीप होने के कारण सड़क मार्ग से यहां आराम से पहुंचा जा सकता है। देश की किसी भी कोने से सड़क मार्ग के माध्यम से कोटेश्वर महादेव मंदिर तक पहुंच सकते हैं।
रेल मार्ग द्वारा
कोटेश्वर महादेव मंदिर का नजदीकी रेलवे स्टेशन ऋषिकेश रेलवे स्टेशन है जो कि कोटेश्वर महादेव मंदिर से लगभग 190 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। ऋषिकेश से आप टैक्सी एवं बस के माध्यम से आ सकते हैं।
हवाई मार्ग द्वारा
कोटेश्वर महादेव मंदिर का नजदीकी एयरपोर्ट जॉली ग्रांट है। यहां से पवित्र धाम की दूरी 160 किलोमीटर है जिसके लिए आप सड़क मार्ग के माध्यम से बस सेवा एवं टैक्सी के द्वारा भी आ सकते हैं।
कोटेश्वर मंदिर से जुड़ें पूछे जाने वाले सवाल
Q- कोटेश्वर महादेव मंदिर कहां है
Q -कोटेश्वर महादेव का इतिहास
Q – कोटेश्वर महादेव मंदिर रुद्रप्रयाग
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