उत्तराखंड के प्रमुख बोलियां. Uttarakhand ki Boliya

उत्तराखंड के प्रमुख बोलियां. Uttarakhand ki Boliya

नमस्ते दोस्तों जय देव भूमि उत्तराखंड। स्वागत है आपका हमारे ब्लॉग के आज के नए लेख में। आज हम आपको उत्तराखंड की प्रमुख भाषाएं एवं बोलियों के बारे में जानकारी देने वाले है । जैसा कि आप सभी लोग जानते है कि उत्तराखंड राज्य भाषाई तौर पर काफी समृद्ध है। यहां पर विभिन्न प्रकार की बोलिय बोली जाती है। जो कि उत्तराखंड राज्य को एक पहचान दिलाने में मदद करते हैं। उत्तराखंड की बोलियां राज्य की पहचान है बोलियों के माध्यम से राज्य की संस्कृति एवं परंपराओं को जीवंत रखा गया है।

उत्तराखंड के प्रमुख बोलियां. Uttarakhand ki Boliya

देवभूमि उत्तराखंड में मुख्य रूप से हिंदी भाषा का उपयोग किया जाता है लेकिन स्थानीय लोगों द्वारा वार्तालाप के लिए अपनी हर क्षेत्र के अलग-अलग बोलियां बनाई गई हैं। इन बोलियों को मुख्य रूप से गढ़वाली एवं कुमाऊनी क्षेत्र के रूप में बांटा गया है। कुमाऊंनी एवं गढ़वाली बोलियों को अलग-अलग भागों में अलग-अलग क्षेत्रों के हिसाब से बांटा गया है। चलिए एक नजर राज्य के प्रमुख बोलियों की ओर डालते हैं।

कुमाऊनी बोली. Uttarakhand ki Boliya

कुमाऊनी बोली कुमाऊं क्षेत्र के उत्तरी तथा दक्षिणी सीमांत को छोड़कर बाकी के संपूर्ण भाग में कुमाऊनी भाषा बोली जाती है। इस भाषा के मूल रूप के संबंधों में कुमाऊनी का विकास , दरद, खस, एवं प्राकृत से माना जाता है। हिंदी भाषा की ही भांति कुमाऊनी भाषा का विकास भी शौरसेनी अपभ्रंश से हुआ है। आज के कुमाऊनी भाषा में तद्भव तत्सम एवं स्थानीय शब्दों के अतिरिक्त आर्ययोत्तर भाषा के शब्द मिले-जुले होते हैं। कुमाऊनी भाषा हिंदी की खड़ी बोली से सर्वाधिक प्रभावित है। कई विद्वानों द्वारा इसे पहाड़ी हिंदी का नाम भी देने लगे।

कुमाऊनी उत्तराखंड की प्रमुख लोक भाषाओं में से एक है जिसकी प्रमुखता एवं प्रसिद्धि का मुख्य कारण है कि इस बोली का शब्द संपदा एवं साहित्य अभिव्यक्ति में संपूर्ण उपयोग किया गया। कुमाऊनी बोलियों को मुख्य रूप से निम्नलिखित भागों में बांटा गया है।

पूर्वी कुमाऊनी बोलियां. Uttarakhand ki Boliya

कुम्मयां – मुख्य रूप से यह बोली नैनीताल से लगे हुए काली कमाई क्षेत्र में बोली जाती है।

असकोटी – यह असकोटी क्षेत्र की बोली है इस पर नेपाली भाषा का प्रभाव पड़ा हुआ है।

शौर्याली – यह बेली जोहार और पूर्वी गंगोली क्षेत्र में बोली जाती है

सिराली – सिराली कुमाऊनी बोली मुख्य रूप से अस्कोट क्षेत्र के सीरा में बोली जाती हैं।

पश्चिमी कुमाऊनी बोलियां. Uttarakhand ki Boliya

पछाई – यह अल्मोड़ा जिले के दक्षिणी भाग में बोली जाती है। यहां तक कि गढ़वाल के कुछ क्षेत्र में भी यह बोली बोली जाती है।

दनपुरिया – यह बोले मुख्य रूप से दानापुर किए उत्तरी भाग में बोली जाती है।

खस पराजिया – यह बोली दानपुर क्षेत्र के आसपास अधिक संख्या में वार्तालाप में लाई जाती हैं।

फल्दा कोटी – अल्मोड़ा एवं नैनीताल के कुछ क्षेत्रों में बोले जाने वाली यह भाषा पाली पछाऊ के क्षेत्र में अधिक बोली जाती है।

चोगखिरिया – इस बोली का उपयोग चौगखर में अधिक बोली जाती है।

गंगोई – यह बोली दानापुर और गंगोली के क्षेत्र में वार्तालाप में लाई जाती है।

उत्तरी कुमाऊनी बोलियां. Uttarakhand ki Bhasayen

जौहरी – जौहरी बोली उत्तराखंड के जौहर व कुमाऊं के उत्तर स्मृति क्षेत्रों में बोली जाती है।

दक्षिणी कुमाऊनी बोलियां. Kumauni Boliya

रचभेसी – रचभेसी नैनीताल के रौ एवं चौमांसी पट्टियों, भीमताल, काठगोदाम आदि क्षेत्रों में अधिक बोली जाती हैं।

गढ़वाली बोली. Uttarakhand ki Bhasayen

उत्तराखंड की प्रमुख भाषा में कुमाऊनी भाषा की तरह गढ़वाली बोली का भी प्रमुख योगदान है। गढ़वाली बोली के पीछे एवं स्थापना के पीछे दरद या खस से मानते है। गढ़वाली साहित्य के प्रमुख कवि हरिराम धस्माना ने वेद महिला पुस्तक में गढ़वाली और वैदिक संस्कृत शब्दों की सूची तैयार की । जिसके आधार पर माना जाता है कि गढ़वाली में कई शब्दों का प्रयोग भौतिक रूप में किया गया है।

बोली की दृष्टि से गढ़वाली बोली को 8 भागों में बांटा गया है जिसका श्रेया डॉक्टर ग्रियर्सन को जाता है। यह 8 भाग मुख्य रूप से इस प्रकार से हैं श्री नगरी, नागपुरिया, दासौल्य, बधाणी, मांझ, कुमोऊं, राठी, सालानी एवं टिहरयाली।

जौनसारी – गढ़वाल क्षेत्र के जौनसार एवं बाबर क्षेत्र में इस बोली का उपयोग अधिक किया जाता है।

भोटिया – यह बोले मुख्य रूप से चमोली एल्बम पिथौरागढ़ के दूरदराज इलाकों में बोली जाती है।

खड़ी हिंदी – खड़ी हिंदी भाषा उत्तराखंड के हरिद्वार, देहरादून एवं रुड़की के कुछ क्षेत्रों में किया जाता है।

निष्कर्ष – दोस्तों आज के लेख में हमने आपको उत्तराखंड के लिए भाषाएं एवं गोली के बारे में जानकारी दी। जिसके अंतर्गत हमने जाना कि उत्तराखंड में गढ़वाली एवं कुमाऊंनी बोली मुख्य रूप से उपयोग में लाई जाती है।

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