नमस्ते दोस्तों जय देव भूमि उत्तराखंड कैसे हैं आप सभी लोग। स्वागत है आपका हमारे ब्लॉग क के आज के नए लेख में। आज के इस लेख के माध्यम से हम आपको उत्तराखंड के लोक देवता नरसिंह देवता के बारे में जानकारी (Narsingh Devta Uttarakhand) देने वाले हैं। जैसा कि आपको पता ही है कि उत्तराखंड देव भूमि के नाम से भी जानी जाती है और प्राचीन काल से ही यहां पवित्र आत्माओं का निवास रहा है उन्हीं पवित्र आत्माओं में से एक है उत्तराखंड के लोक देवता नरसिंह देवता। आज के इस लेख में हम आपको नरसिंह देवता उत्तराखंड के बारे में जानकारी देना चाहते हैं।
नरसिंह देवता उत्तराखंड. Narsingh Devta Uttarakhand
देवों की जन्मभूमि उत्तराखंड प्राचीन काल से ही पवित्र एवं दिव्य आत्माओं का निवास स्थान रही है। जिनका उल्लेख पौराणिक बताओ मैं भी सुनने को मिल जाती है। उन्हीं पवित्र एवं दिव्य आत्माओं में से एक हैं नरसिंह देवता उत्तराखंड (Narsingh Devta Uttarakhand )जिन्हें उत्तराखंड के लोक देवता के नाम से भी जाना जाता है। हिंदू ग्रंथों के अनुसार नरसिंह देवता भगवान विष्णु जी के चौथे अवतार थे। जिनकी शारीरिक रचना मुंहा सिंह का और धड़ मनुष्य का था। इसलिए वह नरसिंह देवता के नाम से जाने गए। लेकिन ग्रंथों में यह भी उल्लेख है कि उत्तराखंड में नरसिंह देवता को भगवान विष्णु के चौथे अवतार के रूप में नहीं पूजा जाता है। किंतु उत्तराखंड में वह सिद्ध योगी नरसिंह देवता के रूप में पूजे जाते हैं।
उत्तराखंड में भगवान विष्णु के चौथे रूम नरसिंह देव की पूजा अर्चना नहीं की जाती है। और ना ही किसी भी नरसिंह देवता के जागर में भगवान विष्णु के चौथे अवतार का वर्णन मिलता है। नरसिंह देव की पूजा करने के लिए जागरण एवं घंडियाल लगाई जाती है जिसमें उनके बावन वीरो एवं नौ रूपों का वर्णन मिलता है। ग्रंथों में भी वर्णित है कि नरसिंह देवता एक जोगी के रूप में पूजे जाते हैं। जो कि एक प्रिय झोला, चिमटा और तीमर का डंडा साथ में लिए रहते हैं।
उत्तराखंड में नरसिंह देवता नौ रूपों में पूजे जाते हैं। Narsingh Devta Ke Roop
- इंगला बीर
- पिंगला वीर
- जतीबीर
- थती बीर
- घोर- अघोर बीर
- चंड बीर
- प्रचंड बीर
- दूधिया नरसिंह
- डौंडिया नरसिंह
नरसिंह देवता उत्तराखंड के प्रमुख मंदिर. Narsingh Devta Mandir Uttarakhand
उत्तराखंड के गढ़वाल एवं कुमाऊं में नरसिंह देवता कुल देवता के रूप में पूजे जाते हैं। दोनों मंडलों में इनकी पूजा का सर्वाधिक महत्व माना जाता है। लेकिन इनका मुख्य मंदिर उत्तराखंड के जोशीमठ के पास स्थित है। बद्रीनाथ का मामा भी कहा जाता है। नरसिंह के जागर गीतों में इन्हें काली के पुत्र के रूप में भी जाना जाता है। जोशीमठ में स्थित नरसिंह देवता के मंदिर के बारे में बताया जाता है कि यह लगभग 12000 साल पुराना है। जिसकी स्थापना किसी और ने नहीं बल्कि आदिगुरु श्री शंकराचार्य जी ने की थी। प्राचीन काल में यह जगह कार्तिकेय पुर के नाम से जानी जाती थी
नरसिंह देवता की उत्पत्ति. Narsingh Devta ki Kahani
नरसिंह देवता की उत्पत्ति कैसे हुई इसके बारे में कोई सटीक एवं सच्ची जानकारी तो नहीं है लेकिन जितनी भी कहानियां हैं उनके आधार पर कहा जा सकता है कि।
नरसिंह देव की उत्पत्ति केसर के पेड़ से हुई थी। नरसिंह देव की जागर से जानकारी मिली है कि उनके जागर में केसर का पेड़ का जिक्र किया गया है। किवदंती है कि केसर का पेड़ हिला और भगवान शिव जी ने केसर के बीज बोए और उनकी दूध से सिंचाई की। उस डाली पर 9 फल लगे और वह 9 फल अलग-अलग स्थानों पर जा गिरे । तब जाकर वाहनों अलग-अलग भाई पैदा हुए। पहला फल केदारघाटी में जा गिरा जहां केदारी नरसिंह पैदा हो गए। दूसरा फाइल बद्री खंड में गिरा जहां बद्री नरसिंह पैदा हुए। ऐसे ही जहां जहां पर वह फल गिरते गए वहां वहां पर नरसिंह देवता उत्पन्न होते गए। जहां जहां पर भी वह दूसरे गए उनके अलग-अलग नाम उत्पन्न होते गए। लेकिन जब नरसिंह देवता की पूजा की जाती है तो इन नौ रूपों का जिक्र जरूर किया जाता है। कोयला और राख की सहायता से इनकी धून भी रमाई जाती हैं। जिस आदमी पर नरसिंह देव अवतरण लेते हैं उन्हीं गढ़वाल में डांगर कहा जाता है। जब उन पर नरसिंह देवता आते हैं तो उनके मुंह से वाणी आदेश के रूप में सुनाई देती हैं। वह आदेश नरसिंह देव के सभी नौ रूपों का होता है।
दोस्तों यह था हमारा आज का लेख , जिसमें हमने आपको नरसिंह देवता के बारें में जानकारी दी आशा करते है की आपको यह लेख पसंद आया होगा, आपको यह लेख केसा लगा हमें टिप्पणी के माध्यम से व्यक्त करें। यदि आप भी ऐसा ही जानकारीयुक्त लेख हम तक पहुंचना चाहते है तो आप हमें ईमेल के माध्यम से भी लिख सकते है।
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