उत्तराखंड की चित्रकला शैली. Major painting style of Uttarakhand

Major painting style of Uttarakhand
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हेलो दोस्तों स्वागत है आपका देवभूमि उत्तराखंड के आज के नए लेख में। आज हम बात करने वाले हैं उत्तराखंड की प्रमुख चित्रकलाओं के बारे में ( Major painting style of Uttarakhand ) । दोस्तों जैसा कि हम सभी लोग जानते हैं कि उत्तराखंड की संस्कृति और परंपराएं यहां के लोगों की देन है। अपनी संस्कृति और परंपराओं को एक सूत्र में बांधने के लिए यहां के लोग विभिन्न प्रकार के चित्र शैलियों का उपयोग करते हैं। उत्तराखंड लोक चित्रकला में प्रकृति का वास है उत्तराखंड के चित्रकला को गढ़वाल चित्रकला के नाम से भी पहचाना जाता है। आज के इस लेख में हम आपको उत्तराखंड की प्रमुख चित्रकलाओं के बारे में जानकारी देने वाले हैं। आशा करते हैं कि आपको यह लेख पसंद आएगा इसलिए इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ना।

उत्तराखंड की प्रमुख चित्रकला शैली. Major painting style of Uttarakhand

चित्रकला शैली को गढ़वाल चित्रकला शैली के नाम से भी पहचाना जाता है। गढ़वाल चित्रकला शैली की शुरुआत लगभग 1658 से माना जाता है जब गढ़वाल नरेशों के दरबार में चित्रकारों को तस्बीरदार कहा जाता था। बताना चाहेंगे की गढ़वाल चित्रकला शैली की शुरुआत महान चित्रकार मौलाराम से हुई है। इनकी प्रमुख चित्रशाला श्रीनगर पौड़ी गढ़वाल में स्थित है।

बैरिस्टर मुकुंदी लाल ने मौलाराम के चित्रकार को दुनिया के सामने प्रस्तुत किया और देश और दुनिया को बताया कि गढ़वाल चित्रकला शैली ( gadwal chitrkala ) का कितना महत्व है। उस समय भी गढ़वाल चित्रकला शैली में मौलाराम जैसे कुशल चित्रकार विद्यमान थे।
1803 में उत्तराखंड में एक विनाशकारी भूकंप आया और इस भूकंप ने मूलाराम की चित्र शाला को ध्वस्त कर दिया था। उत्तराखंड की लोक चित्रकला शैली में कांगड़ा चित्र शैली की झलक भी देखने को मिलती है।

ऐतिहासिक दृष्टि से देखे तो उत्तराखंड के चित्र कला शैली का विकास 15वीं शताब्दी में श्रीनगर में काशी से आए कलाकारों द्वारा महल निर्माण और कुमाऊं संसार चांद के समय कांगड़ा चित्र शैली पृथ्वीराज शाह द्वारा मुगल राजकुमार दाराशिकाहों के शरण मिलने के बावजूद देखने को मिली।

उत्तराखंड लोक चित्रकला शैली के प्रकार. Types of Uttarakhand folk painting style

कांगड़ा चित्र शैली. Kangra painting style

तो उत्तराखंड के लोग चित्रकला शैली मिश्रित है यहां के चित्रकला शैली में कांगड़ा शैली का भी साफ झलक देखने को मिलती है। चित्रकला शैली की शुरुआत महाराजा संसार चंद के शासनकाल में हुई थी। किन हैरानी की बात यह भी है कि इस चित्रकला शैली को चित्रकारी का स्वर्ण युग भी कहा जाता है। इस समय के चित्र शैली में श्री कृष्ण ही छाए रहे क्योंकि महाराजा संसार चंद वैष्णव धर्म के अनुयाई और भगवान कृष्ण के प्रमुख भक्त थे।

इतिहास पर नजर डाले तो देखने को मिलता है कि कांगड़ा शैली के प्रमुख चित्रकार बसिया, परखू, खुशहाल, मानकू, कुशनलाल और फत्तू थे। इस समय के चित्रों पर इन प्रमुख चित्रकारों की हस्ताक्षर देखने को मिले हैं।

गुलेर चित्रकला शैली. Guler painting style

कांगड़ा कलम गुलेर चित्रकार का ही विकसित रूप माना जाता है। चित्रकारी को ऊंचाइयों तक पहुंचाने का श्रेय गुलेर चित्र शैली को ही जाता है। गुलेर चित्र शैली का विकास हरिपुर के राजा हरिश्चंद्र के प्रयासों से ही सफल माना जाता है। राजा हरिश्चंद्र के समय में पहाड़ी कला एवं संस्कृति मुख्य केंद्र हुआ करता था। इसी समय गुलेर चित्र शैली का यौवन उभर कर आया। लेकिन बाद में पहाड़ी राजा इस चित्र शैली को पहले जैसे संरक्षक रखने में असफल रहे और धीरे-धीरे इस चित्र शैली के चित्रकार कांगड़ा चित्र शैली की और आकर्षित होने लगे।

गुलेर चित्र शैली मुख्य रूप से रामायण और महाभारत की घटनाओं का वर्णन मिलता है। धार्मिक चित्रों में गीत गोविंद, कृष्ण चरित्र , शिव परिवार और होली उत्सव,से संबंधित चित्र देखने को मिलते हैं।

ऐपण. appan

उत्तराखंड लोक चित्रकला शैली में ऐपण कला का स्थान तरबूज माना जाता है। ऐपण कला का उपयोग मुख्य रूप से मांगलिक कार्य एवं धार्मिक अनुष्ठानों में किया जाता है। ऐपण मुख्यतः तीन उंगलियां की सहायता से लिखा जाता है। ऐपण कल के बिना धार्मिक अनुष्ठान त्यौहार एवं पूजा अधूरी मानी जाती है।
ऐपण चौकी बनाने हवा दहलीज व आंगन में सजावट के लिए किया जाता है। इसके अंतर्गत लाल मिट्टी वा विसावर की सहायता से चित्र बनाएं जाते हैं।

दोस्तों आपकों बताना चाहेंगे कि ऐपण कला शैली उत्तराखंड के अलावा अन्य राज्यों में भी इस कला का उपयोग किया जाता है। और हर राज्य में इसको अलग-अलग नाम से पुकारा जाता है। वर्तमान समय में ऐपण कला विकसित रूप धारण कर चुकी है।

बसोहली चित्र शैली. Basohli picture style

इस चित्र शैली की समय अवधि 1950 में मानी जाती है । यह चित्र शैली हिंदू धर्म एवं परंपराओं से प्रभावित है। ने शुरुआती समय में यह कला लोक कला पर आधारित थी लेकिन धीरे-धीरे इसमें मुगल काल का भी मिश्रण देखने को मिलता है। इस शैली में नारी आकृतियां कोमल और ओज पूर्ण तथा नेत्र कमल के आकार की बनाई गई है । इस चित्रकला शैली के चित्रों में रेखाएं में ओज एवं उन्मुक्त देखने को मिलती है।

इस चित्रकला शैली में राक्षसों को भी आभूषण पहने चित्रित किया गया है। नायिका का चित्र बादामी रंग से किया जाता था और पक्षियों का चित्रण बंद पिंजरे में किया गया है।

भित्ति चित्र शैली. Mural style

भित्ति चित्र शैली के मुख्य विशेषता यह है कि इसमें बारीक और कोमल रेखाओं का प्रयोग किया गया है। स्त्री और पुरुष का अनुपम सौंदर्य दिखाया गया है साथ ही बात की जाए इसके कुछ उदाहरण की तो इसमें शासको के रूतबे राजमहल से संबंधित चित्रों को दर्शाया गया है। इस चित्र शैली में मानव शरीर लंबा दिखाया गया है जबकि स्त्रियों को आभूषणों के साथ लहंगा हुआ पारदर्शी आंचल में दर्शाया गया है।

डिकरा चित्र शैली. Dekra painting style

उत्तराखंड के महिलाओं द्वारा हरियाली के शुभ अवसर पर मिट्टी से देवी देवताओं की प्रतिमाएं बनाई जाती है जिन्हें जहां के लोग डिकरा कहते हैं। मुख्य रूप से यह पर्व सावन मास के पहले दिन कर्क संक्रांति को मनाया जाता है। दिन को शिव पार्वती का विवाह दिन भी माना जाता है। इसमें भगवान शिव जी व माता पार्वती के अलावा गणेश और कार्तिकेय की मिट्टी की मूर्तियां बनाई जाती है।

ज्यूती पट्टा. Jyoti Patta

ज्यूती पट्टा चित्र शैली में महालक्ष्मी ,महाकाली ,गणेश भगवान व महा सरस्वती एवं मानव की आकृतियों का अंकन किया जाता है। मुख्य रूप से ज्यूती पट्टा मुख्य रूप से यह चित्रकला कागज, कपड़े व लकड़ी पर तैयार की जाती है। ज्यूती पट्टा सरकारी का उपयोग जन्माष्टमी दशहरा, दीपावली एवं विवाह संस्कार में किया जाता है।

वसुधरा चित्र शैली. Wasudhara Chitr sheli

वसुधरा चित्र शैली घर के दहलीज बम मंदिर को गेरु से लिपाई करके बिस्वार के अनेक धाराएं डाली जाती है। धूप की धाराओं की तरह दिखाई देती है।

थापा. thapa chitr sheli

थापा चित्र शैली दीपावली एवं दशहरा एवं दुर्गा पूजा की अवसरों पर चावल से बने श्वेत रंग के साथ सामान्य रंगों की सहायता बनाई जाती है।

देवी शैली. devi sheli

देवी शैली मैं मुख्य रूप से जन्मपत्री , कुंडली, वर्षफल एवं पंचांग में तैयार किए जाते हैं।

लौकिक शैली. lokik sheli

लौकिक शैली में मुख्य रूप से वास्तविक और काल्पनिक जीवन के चित्र देखने को मिलते हैं।

आभार. abhaar chitr sheli

आभार चित्रकला शैली के बारे में है खूबसूरत सा आलेख जाहाब्री द्वारा लिखा गया है।

तो यह था हमारा आज का लेख जिसमें हमने आपको चित्रकला शैली ( Major painting style of Uttarakhand ) के बारे में जानकारी दी। करते हैं कि आपको उत्तराखंड के चित्रकला शैली के बारे में जानकारी मिल गई होगी। आपकों यह लेख कैसा लगा हमें टिप्पणी के माध्यम से जरूर बताएं। उत्तराखंड से संबंधित ऐसे ही जानकारी युक्त लेख पाने के लिए आप देवभूमि उत्तराखंड को जरूर फॉलो करें।

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