हेलो दोस्तों स्वागत है आपका देवभूमि उत्तराखंड के आज के नए लेख में। आज के इसलिए के माध्यम से ही हम आप लोगों के साथ उत्तराखंड का प्रसिद्ध मंदिर कुंजापुरी देवी के बारे में ( Maa Kunjapuri Mandir Uttarakhand) बात करने वाले हैं। दोस्तों जैसा कि हम सभी लोग जानते हैं कि देवभूमि उत्तराखंड में आने को ऐसे पर्यटन स्थल है जो अपने दिव्य शक्तियों एवं पौराणिक इतिहास के लिए पहचाने जाते हैं। उन्हें दिव्या एवं शक्तिपीठ मंदिरों में से एक है मां कुंजापुरी देवी का मंदिर इसके बारे में आज हम इस लेख में बात करने वाले हैं। आशा करते हैं कि आपको हमारा यह लेख पसंद आएगा इसलिए इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ना।
मां कुंजापुरी देवी मंदिर।Maa Kunjapuri Mandir Uttarakhand
उत्तराखंड में टिहरी जिले में स्थित मां कुंजापुरी देवी का मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है यह भक्ति मंदिर ऋषिकेश और गंगोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग के पास स्थित है। ऋषिकेश से मात्र 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित कुंजापुरी देवी का मंदिर लाखों श्रद्धालुओं को आशीर्वाद प्रदान करती है। ( Maa Kunjapuri Mandir Uttarakhand) समुद्र तल से 1776 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह मंदिर सिद्ध पीठ के त्रिकोण को भी पूरा करता है जो की सुरकंडा देवी, कुंजापुरी देवी और चंद्रबनी के त्रिकोण को बनती है।
मंदिर की स्थापना के पीछे बताया जाता है की मां कुंजापुरी देवी का मंदिर की स्थापना जगद्गुरु शंकराचार्य ने की थी। हमें कुंजापुरी देवी की बने इस खूबसूरत से मंदिर का निर्माण हिंडोलखाल रोड पर अदली नामक स्थान पर किया गया है। मंदिर का नाम कुंजापुरी पड़ने के पीछे मान्यता है कि भगवान शिव जी की अर्धांगिनी देवी सती का कुंज भाग यहां गिरा था। इस मिट्टी का नाम मां कुंजापुरी देवी रखा गया।
मां कुंजापुरी देवी मंदिर की पौराणिक कहानी. Maa Kunjapuri Mandir Ki Kahani
मां कुंजापुरी देवी की पौराणिक कहानी के आधार पर माना जाता है की देवी सती के पिता दक्ष प्रजापति ने एक बार बहुत बड़े यज्ञ आयोजन किया था। जैसा कि हम सभी लोग जानते हैं कि दक्ष प्रजापति भगवान विष्णु की बहुत बड़े भक्त थे। राजा दक्ष ने इस बड़े यज्ञ में उन्होंने सभी देवी देवताओं को बुलाया और उनका यथोचित सम्मान किया। लेकिन उन्होंने भगवान शिव जी को इस यज्ञ में नहीं बुलाया जबकि अपनी बेटी सती को इस यज्ञ में बुलाया था।
राजा दक्ष के अनुसार भगवान शिव और उनके अनुयाई अघोरी और पिशाच माथे पर भस्म मलने वाले अशिष्ट थे जो कि उनके अनुसार उनके आदर्श वैष्णव समाज का हिस्सा नहीं हो सकते थे। लेकिन जब देवी सती वहां पहुंची और उन्होंने भगवान शिव और उनके अनुयायियों का स्थान न होने का कारण पूछा तो राजा दक्ष ने भगवान शिव जी का बड़े ही अपशब्दों से अपमान किया। इसे सुनकर देवी सती बहुत ही क्रोधित हुई और यज्ञ की उसे धधकती ज्वाला में कूद गई।
जब इस बात की सोचना भोलेनाथ जी को मिली तो वह बड़े ही क्रोधित हुए और उन्होंने राजा दक्ष का शेर धड़क से अलग करके देवी सती के जले हुए शरीर को अपने हाथों में उठाकर गुस्से में तांडव करने लगें। माना जाता है कि भगवान शिव जी के इस तांडव से धरती कांपने लगी और परलय जैसी स्थिति उत्पन्न हो गई थी।
यह देख सभी देव भगवान विष्णु से सहायता मांगने लगे। भगवान विष्णु जी ने अपने सुदर्शन चक्र से देवी शक्ति के शरीर को 52 टुकड़ों में विभक्त किया और जहां-जहां पर देवी सती के अंग गिरे वह स्थान शक्तिपीठ कहलाए। माना जाता है कि जिस स्थान पर देवी सती का कुंज भाग गिरा वह स्थान ऋषिकेश जहां पर आज के समय में मां कुंजापुरी का प्रसिद्ध मंदिर स्थित है।
मां कुंजापुरी देवी मंदिर की अदभुत प्रथा। Maa Kunjapuri Mandir Partha
दोस्तों जैसा कि हम सभी लोग जानते हैं कि उत्तराखंड के सभी मंदिरों में पुजारी सदैव 152 कहलाते हैं। लेकिन इस मंदिर में भंडारी जाति के राजपूत पुजारी है। जिन्हें बहुगुणा जाति के ब्राह्मणों द्वारा शिक्षा दी जाती है। भक्तों के लिए मां कुंजापुरी देवी का मंदिर पूरे वर्ष भर खुला रहता है। के मुख्य द्वार पर मां कुंजापुरी देवी के वाहन सिंह व हाथियों के मस्तक की मूर्तियां बनी हुई है।
खूबसूरती की दृष्टि से देखे तो यह मंदिर काफी आकर्षक और आधुनिक शैली में बनाया गया है। मंदिर का निर्माण ईट एवं सीमेंट के माध्यम से आधुनिक शैली के अंतर्गत किया गया है जो की दिखने में बेहद खूबसूरत दिखाई देता है। जैसे ही मंदिर में प्रवेश करते हैं तो मंदिर के गर्भ गृह में देवी की कोई मूर्ति स्थित नहीं है बस एक शीला रूपी पिंडी स्थित है । इस मंदिर में निरंतर अखंड ज्योति जल्दी रहती है। मंदिर में मुख्य मंदिर के अलावा एक और मंदिर स्थित है जिसमें भगवान शिव जी और भैरव महाकाली तथा भगवान नरसिंह जी की भव्य मूर्ति स्थापित की गई है।
अपने भव्य मेले के लिए पहचाना जाता है मां कुंजापुरी देवी का मंदिर। Maa Kunjapuri Mandir Mela
दोस्तों मां कुंजापुरी देवी का मंदिर पूरे उत्तराखंड में काफी प्रसिद्ध है। मां कुंजापुरी देवी के मंदिर में विशेष रूप से चैत्र और शारदीय नवरात्र पर यहां पर एक भव्य मेले का आयोजन किया जाता है जिसमें सभी स्थानीय लोग शामिल होते हैं। मंदिर को फूलों और लाइटों से बड़े ही खूबसूरत तरीके से सजाया जाता है। ठाणे लोगों की मान्यता के अनुसार माने तो लगभग 1974 से यह भक्ति मेल आरंभ हुआ था जो कि हर वर्ष नवरात्रों के दिनों में बड़े ही आस्था और भक्ति के साथ संपन्न किया जाता है। मंदिर के आसपास का वातावरण काफी आध्यात्मिक एवं श्रद्धालुओं के लिए उचित माना जाता है क्योंकि इसके आसपास का वातावरण का भी खूबसूरत होने के साथ-साथ मन को तरोताजा कर देने वाला है।
कुंजापुरी देवी मंदिर कैसे पहुंचे. Maa Kunjapuri Mandir Kese Pachuche
यदि आप भी मां कुंजापुरी देवी के दर्शन करना चाहते हैं आपको बताना चाहेंगे की मां कुंजापुरी देवी का प्रसिद्ध मंदिर ऋषिकेश से लगभग 16 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है जहां से 11 किलोमीटर की दूरी पर हिंडोला खाल तक बस के माध्यम से आप आसानी से पहुंच सकते हैं। मां कुंजापुरी देवी का नजदीकी रेलवे स्टेशन देहरादून में स्थित है और यहां का नजदीकी एयरपोर्ट भी देहरादून में स्थित है देहरादून से बस एवं टैक्सी के माध्यम से सभी पर्यटन हिंडोला खाल तक यात्रा कर सकते हैं।
तो यह था हमारा आजकल एक जिसमें हमने आपको मां कुंजापुरी देवी मंदिर के बारे में जानकारी दी आशा करते हैं कि आपको हमारा यह लेख पसंद आया होगा यदि आपको हमारा यह लेख पसंद आया है तो अपने दोस्तों और परिवार के साथ जरूर साझा करें और उत्तराखंड से संबंधित ऐसे ही जानकारी युक्त ले पाने के लिए आप देवभूमि उत्तराखंड को जरूर फॉलो करें।
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मां कुंजापुरी देवी मंदिर FaQ
Ans – मां कुंजापुरी देवी का प्रसिद्ध मंदिर उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल जिले में स्थित है जो की देवी सती को। ऋषिकेश से लगभग 16 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह भव्य मंदिर हिंडोला खाल रोड पर अदली नामक स्थान पर बना हुआ है।
Ans – कुंजापुरी मंदिर का इतिहास के बारे में किवदंति है कि भगवान शिव जी की पत्नी देवी सती का कुंज भाग इस जगह में गिरा था इसलिए यहां पर मां कुंजापुरी देवी का मंदिर बनाया गया। मंदिर में हर वर्ष बड़े भव्य भंडारे का आयोजन किया जाता है जिसमें हजारों श्रद्धालु शामिल होते हैं।
Ans – ऋषिकेश से मां कुंजापुरी मंदिर की दूरी मात्र 30 किलोमीटर है जहां से बस एवं टैक्सी के माध्यम से आप लोग हिंडोला खाल टिहरी गढ़वाल तक पहुंच सकते हैं।
Ans -उत्तराखंड की राजधानी देहरादून से मां कुंजापुरी मंदिर की दूरी 55 किलोमीटर है जहां से बस एवं टैक्सी के माध्यम से सभी श्रद्धालु आसानी से पहुंचते हैं
Ans – मां कुंजापुरी देवी मंदिर का मौसम काफी सुहाना बना रहता है। गर्मियों के समय में मई – जून के माह में यहां का तापमान लगभग 20 डिग्री सेल्सियस के आसपास बना रहता है जो की सामान्य है। देखा जाए तो मां कुंजापुरी देवी मंदिर जाने का सबसे अच्छा समय मई से लेकर अक्टूबर माह के बीच माना जाता है। इस बीच यहां का मौसम काफी सुहाना और देखने लायक होता है।