नमस्ते दोस्तों स्वागत है आपका देव भूमि उत्तराखंड के आज के नए लेख में। आज के इस लेख के माध्यम से हम आप लोगों के साथ कालीमठ मंदिर के बारे में जानकारी देने वाले हैं। देवभूमि उत्तराखंड में अनेकों तीर्थ स्थल एवं पवित्र धाम मौजूद है जो कि अपनी दिव्य शक्तियों एवं इतिहास को अपने में छुपाए बैठे हैं। उन्हीं स्थलों में से एक हैं कालीमठ मंदिर जोकि अपने इतिहास और रहस्य के लिए पूरे देश विदेश में पहचानी जाती है। आज के इस लेख के माध्यम से हम आप लोगों के साथ उत्तराखंड का कालीमठ मंदिर के बारे में संपूर्ण जानकारी देने वाले हैं। दोस्तों आशा करते हैं कि आपको हमारा यह लेख जरूर पसंद आएगा।
कालीमठ मंदिर उत्तराखंड. Kaalimath Mandir Uttarakhand
कालीमठ मंदिर उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में सरस्वती नदी के किनारे पर स्थित है। केदारनाथ की चोटियों से गिरा हुआ यह भव्य मंदिर अपने इतिहास और पौराणिक महत्व के लिए पहचाना जाता है।
समुद्र तल से 1463 मीटर की ऊंचाई पर स्थित कालीमठ मंदिर भारत के प्रमुख शक्तिपीठों में से एक है जो कि हिंदू देवी मां काली को समर्पित है। कालीमठ मंदिर तंत्र साधना की दृष्टि से उच्च कोटि का मंदिर है। स्कंद पुराण के अंतर्गत केदारनाथ के 62 अध्याय में मां काली के इस मंदिर का वर्णन देखने को मिलता है।
कालीमठ मंदिर सबसे शक्तिशाली मंदिरों में से एक है जिसमें नारी शक्ति की शक्ति विद्यमान है। कालीमठ मंदिर की एक ऐसा मंदिर है जहां पर मां काली अपनी बहनों और माता लक्ष्मी के आलावा मां सरस्वती जी के साथ विद्यमान है।
कालीमठ मंदिर का इतिहास. Kaalimath Mandir Ka Itihas
मैं कालीमठ मंदिर का इतिहास के बारे में किवदंती है कि मां दुर्गा ने सुम्भ और निशुंभ नाम के राक्षसों का वध किया था। और इस स्थान पर आज के समय में भी मां करणी के पैरों के निशान मौजूद है। कालीमठ मंदिर का इतिहास से यह ज्ञात होता है कि रक्त शीला पर माता ने रक्तबीज नाम के असुर का अंत किया था। मां दुर्गा को शांत करने के लिए भगवान शिव को रास्ते में लेटना पड़ा था।
कालीमठ मंदिर में काली शिला, रक्त शीला और प्रेतशिला के अलावा चंद्रशिला है और कालीमठ मंदिर में एक अखंड ज्योति जलती रहती है। कालीमठ मंदिर का इतिहास से यह भी ज्ञात होता है कि यहीं पर प्रसिद्ध कभी कालिदास ने मां काली के आशीर्वाद से मेघदूत की रचना की थी।
आज के समय में भी यह मंदिर अपने पौराणिक इतिहास को समय का हुआ है। फिर भी यहां पर पूरे वर्ष भर में है हजारों की संख्या में श्रद्धालु दर्शन के लिए आया करते हैं।
आज के समय में भी जब दशहरा में शीला से खून निकलता है तो मां काली विराजती है और अपनी बहनों के साथ कालीमठ मंदिर रुद्रप्रयाग में 12 साल की बच्ची का रूप धारण करती है।
मां कालीमठ मंदिर का रहस्य. Kaalimath Mandir Ka Rahasy
मैं कालीमठ मंदिर का रहस्य के बारे में जान कर आपको हैरानी होगी कि मैं कालीमठ मंदिर में कोई भी मूर्ति नहीं है बल्कि यहां पर कुंड की पूजा होती है और यह कुंड को केवल नवरात्रि को और अष्ट नवरात्रि को खुलता है। मध्य रात्रि के समय केवल मंदिर के पुजारी द्वारा ही पूजा का कार्य संपन्न किया जाता है।
मां कालीमठ मंदिर से जुड़े कई रहस्य सामने आते हैं जिनमें यह भी माना जाता है कि। जब मां दुर्गा ने सुम्भ और निशुंभ नाम के राक्षसों का वध किया था। तो मां दुर्गा का क्रोध अत्यधिक बढ़ गया था जिस को शांत करने के लिए भगवान शिव जी के द्वारा खुद उनके मार्ग पर लेट कर उनके क्रोध को शांत किया गया।
मां कालीमठ मंदिर मार्ग. Kaalimath Mandir Marg
कालीमठ मंदिर उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है जहां की यात्रा के लिए सबसे अच्छा विकल्प सड़क मार्ग है। सड़क मार्ग के माध्यम से सभी दर्शनार्थी आराम से मां कालीमठ मंदिर तक पहुंच सकते हैं। देश की राजधानी दिल्ली से कालीमठ मंदिर की दूरी लगभग 400 किलोमीटर है। जबकि उत्तराखंड की राजधानी देहरादून से मां काली माता मंदिर की दूरी लगभग 200 किलोमीटर है।
मां कालीमठ मंदिर पहुंचने के लिए आप अपने शहर एवं गांव से रुद्रप्रयाग तक यात्रा कर सकते हैं । जिसके लिए उत्तराखंड की यूटीसी बस और प्राइवेट बस की मदद भी ले सकते हैं।
दोस्तों यह तो हमारा आज का लेख मां कालीमठ मंदिर के बारे में। आशा करते हैं कि आपको मां कालीमठ मंदिर के बारे में जानकारी मिल गई होगी। यदि आपको यह जानकारी पसंद आई है तो अपने दोस्तों और परिवार के साथ जरूर साझा करें।
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