हेलो दोस्तों स्वागत है आपका देवभूमि उत्तराखंड के आज के नए लेख में। आज के इसलिए के माध्यम से हम आप लोगों के साथ उत्तराखंड का प्रसिद्ध मंदिर मध्यमहेश्वर मंदिर के बारे में जानकारी देने वाले हैं। दोस्तों जैसा कि हम सभी लोग जानते हैं कि देवभूमि उत्तराखंड प्राचीन काल से ही दिव्य आत्माओं का निवास रही है। इसी कारण यहां पर अनेक प्रकार के ऐसे मंदिर है जो अपने पौराणिक इतिहास और दिव्य शक्तियों के लिए पहचाने जाते हैं। उन्ही मंदिरों में से एक है मध्यमहेश्वर मंदिर ( Madhyamaheshwar Temple ) की उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है। आज के इस लेख के माध्यम से हम आप लोगों के साथ मध्यमहेश्वर मंदिर के बारे में जानकारी साझा करने वाले हैं। आशा करते हैं कि आपको हमारा यह लेख पसंद आएगा। इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ना।
मध्यमहेश्वर मंदिर उत्तराखंड. Madhyamaheshwar Temple
पंच केदार में से एक प्रसिद्ध मध्यमहेश्वर मंदिर उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है जो कि भगवान शिव जी को समर्पित हैं। समुद्र तल से करीब 3290 मीटर की ऊंचाई पर स्थित मध्यमहेश्वर मंदिर मैं भगवान शिव जी के नाभि की पूजा की जाती है। संपूर्ण शरीर निकटतम देश नेपाल की राजधानी काठमांडू के पशुपतिनाथ मंदिर में होती है। प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण मध्यमहेश्वर मंदिर यहां आने वाले श्रद्धालुओं को सुकून के पल अनुभव करता है। इसके आसपास का वातावरण काफी शुद्ध एवं हरा भरा है यहां से चौखंबा और हिमालय पर्वत के खूबसूरत से नजारे देखे जा सकते हैं।
मध्यमहेश्वर मंदिर का इतिहास, Madhyamaheshwar Temple History
दोस्तों जिस तरह से हर किसी मंदिर का अपने आप में इतिहास छुपा हुआ होता है ठीक उसी तरह से मध्यमहेश्वर मंदिर के बारे में किवदंति है की मध्यमहेश्वर मंदिर का निर्माण महाभारत के समय में पांडवों के द्वारा किया गया था। जब पांडव महाभारत का भीषण युद्ध जीत गए थे तब वे गोत्र हत्या के पाप से मुक्ति पानी के लिए भगवान भोलेनाथ के दर्शन करना चाहते थे। उनमें कुछ भगवान भोलेनाथ के भक्त भी थे तो इसलिए शिव जी उन्हें दर्शन नहीं देना चाहते थे और उनसे क्रोध थे।
इसलिए माना जाता है कि भगवान शिव जी बैल का अवतार लेकर धरती में विद्यमान थे। लेकिन भीम ने उन्हें देख लिया। कहानी के अनुसार भी ने उन्हें पकड़ लिया था लेकिन बेल का पीछा वाला भाग वहीं रह गया जबकि अन्य चार अलग अलग भागों में विभाजित होकर विभिन्न स्थानों पर गिरे। जिस भी स्थान पर इस दिव्य रूपी बैल का अंग उन्हें पंच केदार कहा गया। स्थान पर पांडवों ने भगवान शिव जी के मंदिर का निर्माण करवाया जिन्हें पंच केदार कहते हैं। और मध्यमहेश्वर मंदिर भी उन्हीं पंच केदार में से एक है।
भगवान शिव जी और माता पार्वती ने मधुचंद्र रात्रि यही बिताई थी।
दोस्तों मध्यमहेश्वर मंदिर के बारे में एक पौराणिक कहानी यह भी मानी जाती है की खान शिव जी और माता पार्वती ने अपनी मधुर चंद्र रात्रि यही बताई थी। इसके आस पास का प्राकृतिक सौंदर्य काफी खूबसूरत होने के कारण यह श्रद्धालुओं के मन को खूब लुभवाता है।
मध्यमहेश्वर मंदिर की संरचना.Structure of Madhyamaheshwar
प्रकृति की खूबसूरत वादियों के बीच में स्थित मध्यमहेश्वर मंदिर मंदिर की संरचना बड़े-बड़े पत्थरों की सहायता से की गई है। के गर्भ ग्रह में भगवान शिव को समर्पित नाभि के आकार का शिवलिंग स्थापित किया गया है। जो कि कल पत्थरों से निर्मित किया गया है। इसके अलावा मंदिर में दो मूर्तियां स्थापित है एक मूर्ति भगवान शिव वा माता पार्वती का रूप अर्धनारीश्वर को समर्पित है। जबकि दूसरी मूर्ति माता पार्वती को समर्पित है। इसी मंदिर के पास में एक अन्य छोटा सा मंदिर है जिसे बुढा मध्य हेश्वर के नाम से जाना जाता है।
मध्यमहेश्वर मंदिर खुलने का समय. Madhyamaheshwar Temple Opening Timings
दोस्तों यदि बात की जाएं मध्यमहेश्वर मंदिर का खुलने का समय के बारे में तो बताना चाहेंगे कि मध्यमहेश्वर मंदिर सुबह 6:00 बजे से लेकर शाम के 7:00 बजे तक भक्तों के लिए खुला रहता है। जबकि मंदिर में पूजा का समय सुबह 8:00 बजे और शाम के 7:30 बजे की जाती है इसके कुछ देर बाद मंदिर के कपाट बंद किए जाते हैं।
पंच केदार में से एक मध्यमहेश्वर मंदिर भी सर्दियों में बर्फबारी से ढका रहता है इसलिए समय में मंदिर कई महीनो तक बंद रहता है। जबकि हिंदू कैलेंडर के अनुसार एक निश्चित तिथि को मंदिर खोला जाता है।
मध्यमहेश्वर मंदिर कैसे पहुंचे. How To Reach Madhyamaheshwar Temple
दोस्तों यदि आप भी मध्यमहेश्वर मंदिर के दर्शन करना चाहते हैं और मध्यमहेश्वर मंदिर कैसे पहुंचे के बारे में सोच रहे हैं तो हम आपको बताना चाहेंगे कि सड़क मार्ग और वायु मार्ग के अलावा रेल मार्ग के द्वारा भी मध्यमहेश्वर मंदिर पहुंच सकते है।
हवाई मार्ग से मध्यमहेश्वर मंदिर कैसे जाए: – यदि आप हवाई जहाज से मध्यमहेश्वर मंदिर मंदिर के दर्शन करना चाहते हैं तो उखीमठ के सबसे नजदीकी हवाई अड्डा देहरादून का ग्रांट जॉली एयरपोर्ट है। यहाँ से बस या टैक्सी करके रांसी गाँव तक पहुंच सकते है।
रेल मार्ग से मध्यमहेश्वर मंदिर कैसे जाए: – आप सभी भारतीयों की पसंदीदा रेलगाड़ी से मदमहेश्वर मंदिर आ सकते हैं। मध्यमहेश्वर मंदिर का सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन ऋषिकेश में है। यहाँ से फिर आपको बस या टैक्सी की सहायता से रांसी तक आना पड़ेगा।
सड़क मार्ग से मध्यमहेश्वर मंदिर कैसे जाए: – आज के समय में उत्तराखंड राज्य का लगभग हर शहर व कस्बा सड़क मार्ग से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ हैं। आपको दिल्ली, चंडीगढ़, इत्यादि से ऋषिकेश तक की सीधी बस आसानी से मिल जाएगी। फिर वहां से आगे के लिए आप स्थानीय बस या टैक्सी कर रांसी गाँव तक पहुँच सकते हैं यही पर आपको भेलोनाथ के दर्शन हो जायेंगे।
दोस्तों यह था हमारा आज का लेख। जिसमें हमने आपको मध्यमहेश्वर मंदिर के बारे में जानकारी दी ( Madhyamaheshwar Temple ) । आशा करते हैं कि आपको मध्यमहेश्वर मंदिर के बारे में जानकारी मिल गई होगी। देवभूमि उत्तराखंड से संबंधित ऐसे जानकारी युक्त लेख पढ़ने के लिए देवभूमि उत्तराखंड को जरूर फॉलो करें।
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