चन्द्रकुंवर बर्त्वाल जीवन परिचय. Chandrakunwar Bartwal Biography

Chandrakunwar Bartwal Biography
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हेलो दोस्तों स्वागत है आपका देवभूमि उत्तराखंड के आज के नए लेख में । आज के इसलिए के माध्यम से हम आप लोगों के साथ उत्तराखंड के महान गायक एवं महान कवि चन्द्रकुंवर बर्त्वाल के जीवन परिचय ( Chandrakunwar Bartwal Biography) के बारे में जानकारी देना चाहते हैं। आशा करते हैं कि आपको यह जानकारी अच्छी लगेगी इसलिए लेख को अंत तक जरूर पढ़ना।

चन्द्रकुंवर बर्त्वाल जीवन परिचय.Chandrakunwar Bartwal Biography

चन्द्रकुंवर बर्त्वाल का जन्म 20 अगस्त 1919 को उत्तराखंड के चमोली जिले के मालकोठी गांव में हुआ। इनके पिता का नाम भोपाल सिंह एवं माता का नाम जानकी देवी है। यह मुख्य रूप से उत्तराखंड के महान कवि एवं लोक गायक के लिए पहचाने जाते हैं।

चन्द्रकुंवर बर्त्वाल शिक्षा.Chandrakunwar Bartwal Education

उत्तराखंड में जन्मे चन्द्रकुंवर बर्त्वाल की शिक्षा पौड़ी , देहरादून और प्रयाग में हुई। सन 1939 में इन्होंने इलाहाबाद से B.A की परीक्षा उत्तीर्ण्य की और सन 1941 में M.A कक्षा के लिए लखनऊ विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया। इसी दौरान उनके मुलाकात हिंदी साहित्य के प्रमुख कवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी से हुई। क्षय रोग के कारण वह घर वापस आ गए और लगभग 8 साल तक वह अपने गांव पवालिया और अगस्तमुनि में रुके। अगस्तमुनि में वह कुछ समय के लिए हेड मास्टर के लिए भी नियुक्त हुए लेकिन उन्होंने वह नौकरी छोड़ दी।

सरस्वती के व्रत पुत्र काफल पाको के अमर लोक गायक चन्द्रकुंवर बर्त्वाल ने अपनी कॉल जय रचनाओं में हिमालय के जालंत स्वरूप का चित्रण बेखुदी से किया है। इन्होंने अपनी रचनाओं में प्रकृति का चित्रण बेखुदी से किया है। प्रतिभा के धनी और प्रकृति के परम पुजारी चन्द्रकुंवर बर्त्वाल उत्तराखंड संस्कृति और साहित्य के धुरंधर व्याख्या करने वालें प्रकृतिवाद के प्रमुख प्रस्तोता है ।

महान कवि चन्द्रकुंवर बर्त्वाल को अपनी जन्मभूमि उत्तराखंड से बहुत लगाव था। प्राकृतिक खूबसूरती और प्रकृति के लिए प्रेम उनके हृदय में इतना था कि उनके लिखी हुई पंक्तियों के माध्यम से साफ झलकता है। अपने उत्तराखंड के लिए कुछ कर दिखाने का जज्बा था तो उत्तराखंड के संस्कृति और प्रकृति का उन्होंने बेखुदी से व्याख्यान किया है। नीचे लिखी पंक्तियों के माध्यम से भी हम प्रकृति के प्रति उनके प्रेम को समझ सकते हैं।

प्यारे समुद्र मैदान जिन्हें
नित रहे उन्हें वही प्यारे
मुझ को हिम से भरे हुए
अपने पहाड़ ही प्यारे है।

साहित्य प्रकाशन में नहीं मिली सफलता. Chandrakunwar Bartwal Poetry

चन्द्रकुंवर बर्त्वाल को बचपन से ही लिखने का काफी शौक था। प्रकृति प्रेमी और अपने संस्कृति के प्रति काफी लगाव और प्रेम था। प्रकृति के खूबसूरती को उन्होंने अपनी लेखनी के माध्यम से बेखुदी से व्यक्त किया है । प्रकृति के प्रति जो भी मन में रहता है वह तुरंत उसे कागज में उकेर देते थे। वह जो कुछ भी लिखते थे अपने आसपास एवं अपने मित्रों को भेज देते थे। लेखन की एक अच्छी कला होने के बावजूद भी वह अपने रचनाओं को प्रकाशित नहीं कर पाए। चन्द्रकुंवर बर्त्वाल के मित्र पंडित शंभू प्रसाद बहुगुणा जी ने उनकी रचनाओं को व्यवस्थित करने में काफी मदद की।

चन्द्रकुंवर बर्त्वाल का निधन. Chandrakunwar Bartwal Death

14 सितंबर 1947 को उत्तराखंड ने अपने इस महान कवि चन्द्रकुंवर बर्त्वाल को खो दिया। मात्र 27 वर्ष की आयु में चन्द्रकुंवर बर्त्वाल ने उत्तराखंड साहित्य मैं वह योगदान दिया है जिसकी कल्पना कर पाना मुश्किल है। जिसे बयां करने के लिए किसी साहित्यकार को दशकों का अनुभव चाहिए होता है।

मैं मर जाऊंगा पर मेरे
जीवन का आनंद नहीं।
झर जावेंगे पत्रकुसुम तरु
पर मधु-प्राण बसंत नहीं

दोस्तों यह था हमारा आज का लेख जिसमें हमने आपको चन्द्रकुंवर बर्त्वाल के जीवन परिचय के बारे में जानकारी दी। आशा करते हैं कि आपको उत्तराखंड के महान चन्द्रकुंवर बर्त्वाल के जीवन के बारे में पढ़कर अच्छा लगा होगा। यदि आपको यह लेख पसंद आया है तो अपने दोस्तों और परिवार के साथ जरूर साझा करें और उत्तराखंड की ऐसे ही जानकारी युक्त लेख पाने के लिए देवभूमि उत्तराखंड को जरूर फॉलो करें।

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