उत्तराखंड राज्य परिचय. Uattarakhand Parichay

uttarakhand-parichay

हेलो दोस्तों स्वागत है आपका देव भूमि उत्तराखंड के आज के नए लेख में। आज हम आप लोगों के साथ उत्तराखंड का संपूर्ण परिचय से संबंधित जानकारियां साझा करने वाले हैं ‌ जैसा कि आप सभी लोग जानते हैं कि देव भूमि उत्तराखंड अपने सांस्कृतिक कला एवं परंपराओं के लिए पूरे देश विदेशों में मशहूर है ठीक उसी प्रकार से इसे ऐतिहासिक तौर पर भी देवों की भूमि के नाम से जाना जाता है। इस लेख के माध्यम से हम आपको उत्तराखंड का संपूर्ण परिचय देना चाहते हैं।

Table of Contents

उत्तराखंड के बारे में. Uttarakhand Ke baren Me

प्रसिद्ध राज्य उत्तराखंड भारत के उत्तरी क्षेत्र में स्थित एक पर्वतीय राज्य है। जो कि अपनी संस्कृति एवं परंपराओं के तौर पर एक नई पहचान बनाया हुआ है। देवभूमि उत्तराखंड की 9 नवंबर 2000 को स्थापना की गई। इससे पहले उत्तराखंड राज्य उत्तर प्रदेश राज्य का एक हिस्सा हुआ करता था। लोगों की एक अलग मांग के कारण उत्तराखंड राज्य को उत्तर प्रदेश राज्य से अलग किया गया और 9 नवंबर 2000 को उत्तराखंड राज्य के रूप में एक नई राज्य की नींव रखी गई। जबकि 1 जनवरी 2007 से उत्तराखंड राज्य का नाम उत्तरांचल से उत्तराखंड में परिवर्तित हो गया। पहले इस राज्य को उत्तरांचल के नाम से भी जाना जाता था।

उत्तराखंड के पूर्व में नेपाल एवं पश्चिम में हिमाचल और उत्तर में तिब्बत राज्य स्थित है। भारत का 26 वा राज्य के रूप में सामने आया जबकि हिमालय क्षेत्र का यह दसवां राज्य है। प्राचीन काल से ही उत्तराखंड दिव्य आत्माओं का निवास स्थान रही है इसलिए इसे देवभूमि के नाम से भी जाना जाता है। उत्तराखंड राज्य को दो भागों में बांटा गया है गढ़वाल मंडल एवं कुमाऊं मंडल। हिंदू शास्त्रों के अनुसार उत्तराखंड के कुमाऊं को मानस खंड एवं गढ़वाल क्षेत्र को केदारखंड के नाम से जाना गया है। ऋग्वेद में उत्तराखंड को देवभूमि की संज्ञा दी गई है।

उत्तराखंड राज्य में हिंदू धर्म की पवित्र एवं भारत की सबसे बड़ी नदियां गंगा और यमुना का उद्गम स्थल क्रमशः गंगोत्री और यमुनोत्री से माना जाता है। इन नदियों के तट पर बसे वैदिक संस्कृति के पवित्र तीर्थ स्थान भी शामिल हैं। जिन्हें भारत के तीर्थ स्थलों के रूप में भी जाना जाता है। बताना चाहेंगे कि भारत के चार छोटे धाम यमुनोत्री, गंगोत्री एवं केदारनाथ, बद्रीनाथ उत्तराखंड राज्य में ही शामिल है।

उत्तराखंड राज्य भारत के सर्वश्रेष्ठ राज्यों में से एक है जहां पर पर्यटन एवं राज्य की संस्कृति को मुख्य स्रोत माना जाता है। बताना चाहेंगे कि प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण उत्तराखंड भारत के प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों में से एक है। जहां पर हर साल लाखों की संख्या में देश विदेशों से पर्यटक आया करते हैं। चार छोटे धामों का घर होने के कारण इस राज्य का विशेष महत्व है। ठीक उसी तरह से राज्य की संस्कृति भी राज्य की प्रसिद्धि का एक कारण है।

राज्य की संस्कृति एवं परंपराएं वहां के लोगों के रहन-सहन से झलकती है। उत्तराखंड के पारंपरिक पोशाक इस राज्य को विशेष स्थान दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निर्वाह करते हैं। राज्य के पारंपरिक पोशाक मुख्य रूप से गढ़वाल एवं कुमाऊं क्षेत्र में अलग-अलग तरीके से पहने जाते हैं। उत्तराखंड को त्योहारों का शहर भी कहा जाता है। उत्तराखंड संस्कृति को जीवंत रखने के लिए उत्तराखंड के लोगों द्वारा आज के समय में भी विभिन्न प्रकार के त्यौहार एवं लोक पर्व बनाए जाते हैं। यह मेले मुख्य रूप से राज्य के लोगों द्वारा बनाए जाते हैं जो कि उनकी संस्कृति एवं कलाओं को प्रदर्शित करती है।

उत्तराखंड के भौगोलिक संरचना. Geographical Structure of Uttarakhand In Hindi

उत्तराखंड को भौगोलिक दृष्टि से देखें तो क्षेत्रफल की दृष्टि से उत्तराखंड भारत का 18 वां राज्य है। एक पर्वतीय राज्य होने के कारण राज्य का अधिकांश भाग पर्वतीय है। उत्तराखंड राज्य का 86% भाग पर्वतीय है इसमें से 65% भाग जंगलों से ढका हुआ है। उत्तराखंड राज्य भारत का 26 वां राज्य है जो 28°43′ से 31° 27′ उत्तरी अक्षांशों तथा 77° 34′ से 81°02′ पूर्वी देशांतर तक है। उत्तराखंड राज्य भारत का दसवां हिमालय राज्य के रूप में जाना जाता है।

उत्तराखंड राज्य का क्षेत्रफल 53,483 किलोमीटर है जो कि भारत देश की संपूर्ण क्षेत्रफल का लगभग 1.69 प्रतिशत है। प्रसिद्ध राज्य उत्तराखंड में 13 जिले स्थित है जबकि देहरादून राज्य की राजधानी के लिए प्रसिद्ध है। लेकिन बताना चाहेंगे कि असम राज्य की ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण मानी जाती है।

सन 2022- 23 के आंकड़ों के अनुसार उत्तराखंड राज्य की जनसंख्या लगभग 1 करोड़ 17 लाख 99 आगे गई है। जिसमें से पुरुषों की अनुमानित जनसंख्या लगभग 5960315 मानी गई है। जबकि महिलाओं की जनसंख्या लगभग 5739784 आंकी गई है। जो कि देश की कुल जनसंख्या का लगभग 0.85 प्रतिशत हैं।

सन 2011 की जनगणना के अनुसार उत्तराखंड राज्य की जनसंख्या 1,00,86,349 थी जो कि 2022 में बढ़कर 1 करोड़ 17 लाख 99 हो गई है।

उत्तराखंड राज्य का इतिहास. History of Uttarakhand State In Hindi

उत्तराखंड का इतिहास प्राचीन काल से जुड़ा हुआ है। उत्तराखंड में विभिन्न राजाओं का शासन माना जाता है। पौराणिक ग्रंथों में कुर्मांचल क्षेत्र को मानस खंड के नाम से जाना जाता था। मानस खंड का कुर्मांचल व कुमाऊं नाम चंद राजाओं के शासन काल से प्रचलित हुआ। ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर मान्यता है कि चंद राजाओं का शासन कत्युरियों के बाद माना जाता है। 1790 से 1815 ईस्वी तक कुमाऊं पर गौरखाओ का शासन रहा। उत्तराखंड राज्य का इतिहास में गोरखाओ के शासन के बारे में अधिक जानकारी मिलती है। जिसके आधार पर हम कह सकते हैं कि उत्तराखंड के अधिकांश भागों पर गौरखाओ का शासन रहा। अंग्रेजों ने उत्तराखंड में राज करने के लिए ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना की और भारतीयों को उसमें रोजगार देने का कार्य शुरू किया जिससे कि धीरे-धीरे भारतीय मूल के लोग अंग्रेजों के गुलाम बनते गए।

इतिहास के पन्नों से ज्ञात होता है कि केदारखंड कई गढ़ों में विभक्त था। और इन प्रमुख गढ़ों पर विभिन्न राजाओं का राज हुआ करता था। इतिहासकारों के अनुसार पंवार वंश के राजा ने इन सभी गढ़ों को अपने अधीन करके गढ़वाल राज्य की स्थापना की और उसकी राजधानी प्राय श्रीनगर में स्थापित कि‌ ।

1949 में पहरी राज्य का विलय संयुक्त प्रांत उत्तर प्रदेश के 1 जिले के रूप में किया गया। 1962 में भारत और चीन के बीच युद्ध वह मध्य नजर रखते हुए उत्तराखंड वासियों द्वारा नए राज्य की मांग की गई जिसके फलस्वरूप 9 नवंबर 2000 को उत्तराखंड के रूप में एक नया राज्य बनाया गया है। नए राज्य के मांग की मुख्य कारण उत्तराखंड मूल के लोगों को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता से माना जाता है।

उत्तराखंड राज्य की अर्थव्यवस्था. Economy of Uttarakhand State In Hindi

उत्तराखंड राज्य भारत का एक पर्वतीय राज्य है। इसलिए राज्य की अर्थव्यवस्था कृषि कार्यों पर निर्भर रहती है। आज के समय में भी उत्तराखंड की अधिकांश जनसंख्या कृषि कार्यों के माध्यम से ही अपना पालन पोषण किया करती है। जबकि राज्य की अर्थव्यवस्था में पर्यटन का हिस्सा भी सर्वोत्तम माना जाता है जिसका मूल कारण है उत्तराखंड की प्राकृतिक सौंदर्य। उत्तराखंड में कृषि मुख्य रूप से मौसम पर निर्भर है क्योंकि पहाड़ के अधिकांश भागों में सिंचाई के पर्याप्त साधन न होने के कारण किसानों को मौसम पर निर्भर रहना पड़ता है जबकि मैदानी क्षेत्र जैसे कि देहरादून, उधम सिंह नगर, हरिद्वार आदि जगह में सिंचाई के पर्याप्त साधन होने से कृषि उत्पादों के उत्पादन में बढ़ोतरी देखी जा सकती हैं। लेकिन राज्य का अधिकांश भाग पर्वतीय है जिसके कारण पहाड़ में बसे लोग परंपरागत कृषि के तौर तरीकों से अपनी आजीविका उत्पन्न किया करते हैं।

राज्य के प्रमुख उत्पादों में गेहूं, चावल के अलावा गन्ना एवं सरसों का पर्याप्त मात्रा में उत्पादन किया जाता है। शहरी क्षेत्रों में आधुनिक कृषि के यंत्रों का उपयोग करके उत्पादन की मात्रा में बढ़ोतरी की जाती है। राज्य के पर्वतीय क्षेत्रों में पहाड़ी दालें एवं गेहूं, तिलहन के साथ धान एवं मडुवे का उत्पादन किया जाता है। उत्तराखंड के पहाड़ों में सीडी नुमा खेत पाए जाते हैं।

सन 2022-23 के आंकड़ों के अनुसार उत्तराखंड राज्य का सकल घरेलू उत्पाद (GDP) 2,76,677 करो रुपए होने का अनुमान है। जिसमें बीते वर्ष के अनुसार 9% की वृद्धि हुई है। जीडीपी के अनुसार उत्तराखंड का स्थान भारत में 20वें स्थान पर आता है।

उत्तराखंड राज्य की संस्कृति. Culture of Uttarakhand State In Hindi

उत्तराखंड की संस्कृति राज्य को एक विशेष पहचान दिलाने में मुख्य भूमिका निभाती है। आज के समय में उत्तराखंड की संस्कृति इतनी मशहूर है कि इसे हर कोई अपनाना चाहता है। यही कारण है कि देश विदेशों में भी उत्तराखंड की संस्कृति की झलक देखी जा सकती हैं। उत्तराखंड की संस्कृति के मुख्य तत्व राज्य के पारंपरिक भोजन के पकवान एवं उत्तराखंड राज्य के पारंपरिक पोशाक शामिल है ‌। इनके अलावा भी राज्य की वस्तु एवं शिल्प कला उत्तराखंड को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने में मदद करते हैं। इन सभी तत्वों के बिना उत्तराखंड की संस्कृति अधूरी मानी जाती है।

माना जाता है कि किसी भी राज्य की संस्कृति वहां के लोगों के रहन-सहन के माध्यम से प्रस्तुत होती है ठीक उसी प्रकार से उत्तराखंड राज्य की संस्कृति उत्तराखंड राज्य के लोगों के पारंपरिक पोशाक एवं उनके दैनिक जीवन में बनाए गए पारंपरिक खानपान से प्रस्तुत होती है। चलिए एक नजर उत्तराखंड की संस्कृति के प्रमुख तत्वों की ओर डालते हैं।

उत्तराखंड के पारंपरिक पोशाक. Traditional dress of uttarakhand

उत्तराखंड भारत के उन राज्यों में से एक है जहां की संस्कृति की झलक वहां के पारंपरिक पोशाक से प्रदर्शित होती हैं । वाकई में उत्तराखंड संस्कृति की झलक वहां के लोगों के रहन सहन के साथ उनके पारंपरिक पोशाक से झलकती है। सामान्यतः यहां के लोग अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में सामान्य कपड़े पहनते हैं लेकिन किसी खास त्यौहार एवं पर्व के समय हैं यहां के लोग अपने पारंपरिक पोशाक में उतरते हैं। और उसके बाद जो उनकी खूबसूरती होती है वह वाकई में चार चांद लगने जैसी होती है।

गढ़वाली पुरुषों के पोशाक – कुर्ता, मिरजाई, सफेद टोपी, पगड़ी, बास्कट, धोती, पायजामा,

गढ़वाली स्त्रियों के पोशाक – पिछोड़ा, धोती, गाती, आगड़ी, आदि।

गढ़वाली बच्चों के कपड़े – झगली, घाघरा, कोट, संतराथ, चूड़ीदार पाजामा, आदि

कुमाऊनी महिलाओं के कपड़े – घागरी, आगड़ा, खानू आगड़ी, धोती, पिछोड़, आदि

कुमाऊनी पुरुषों के परिधान – पैजामा, धोती, सुराव, कोट, कुर्ता, कमीज, टांक, टोपी, भोटू।

कुमाऊनी बच्चों के कपड़े – संतराथ, झगुल, कोट, लम्बी फ्रॉक।

उत्तराखंड राज्य का खान पान. Food of uttarakhand state In Hindi

उत्तराखंड राज्य के भोजन के व्यंजन राज्य की संस्कृति के महत्वपूर्ण अंग है। उत्तराखंड के पारंपरिक भोजन के व्यंजन लोगों के रहन-सहन एवं वहां की संस्कृति के बारे में जानकारी प्रदान करते हैं। वाकई में उत्तराखंड के भोजन के लिए उत्तराखंड की संस्कृति को संजोने का कार्य करते हैं ‌‌। पोषक तत्वों से भरपूर यहां के पारंपरिक भोजन शुद्ध होने के साथ-साथ स्वास्थ्य के लिए भी बेहद लाभदायक होते हैं। उत्तराखंड के बारे में एक तथ्य यह भी है कि यदि आप उत्तराखंड जाओ तो आपको वहां का पारंपरिक भोजन जरूर खाना चाहिए। क्योंकि इस पारंपरिक भोजन में कहीं ना कहीं लोगों का प्यारा एवं अपनेपन का अहसास छुपा होता है। शायद इसीलिए पर्यटकों की जुबान से यहां के भोजन के व्यंजनों के बारे में हमेशा अच्छा ही सुना जाता है। उत्तराखंड के पारंपरिक भोजन के व्यंजन कुछ इस प्रकार से है ।

  • मडुवे की रोटी
  • चोंसू
  • जोली भात
  • कपिलु
  • कंडेली की भुज्जी
  • सिसौन का साग
  • गहत की दाल
  • फानू
  • बाड़ी
  • मक्के की रोटी

उत्तराखंड राज्य के प्रमुख त्यौहार. Major festivals of Uttarakhand state In Hindi

जैसा कि हम आपको पहले ही बता चुके हैं कि उत्तराखंड को त्योहारों का शहर भी कहा जाता है क्योंकि यहां पर त्योहार सबसे ज्यादा मनाए जाते हैं और बताना चाहेंगे कि इन सभी त्योहारों को मनाने के पीछे कोई ना कोई ऐतिहासिक एवं पौराणिक महत्व जरूर होता है। ऐतिहासिक मान्यताओं के आधार पर यह भी माना जाता है कि उत्तराखंड के लोक पर्व एवं त्यौहार लोगों के द्वारा ही बनाएं जाते हैं इन सभी पर्वों को मनाने के पीछे प्रकृति के नए रूप से लेकर किसी विशेष स्थान एवं व्यक्ति से जुड़े हुए होते हैं।

दीपावली – दीपावली उत्तराखंड के प्रमुख त्योहारों में से एक है जो कि हर वर्ष बड़े ही धूमधाम एवं हर्षोल्लास के साथ मनाई जाती है। शुभ अवसर पर घर के आंगन के लिपाई पुताई की जाती है एवं ऐपन कला के माध्यम से आंगन को सजाया जाता है।

रक्षाबंधन – श्रावण पूर्णिमा के दिन मनाया जाने वाला यह पर्व उत्तराखंड में भी बड़े ही हर्ष एवं उल्लास के साथ आयोजित किया जाता है। रक्षाबंधन के दिन उत्तराखंड में अपने यजमानों को यज्ञोपवीत तथा रक्षा देते है। इसी दिन बहन द्वारा भाई को राखी बांधने की परंपरा भी पूर्ण की जाती है।

मकर संक्रांति – जनवरी के शुरुआत में मनाया जाने वाला यह पारंपरिक त्यौहार माघ माह की एक गति को ऐतिहासिक महत्व के साथ मनाया जाता है। इस दिन उत्तराखंड के सभी घरों में घुघुतिया बनाए जाते हैं। छोटे बच्चों द्वारा उन्हें कौवों खिलाया जाता है। इस तरह से उत्तराखंड वासी अपने परंपराओं को संजोते है।

घी सक्रांति – घी सक्रांति हर वर्ष सितंबर माह के मध्य में मनाई जाती है। घी संक्रांति मनाने के पीछे प्रकृति के नए रूप एवं किसानों के उपज की उगने की खुशी में घी संक्रांति का त्योहार मनाया जाता है। घी संक्रांति के दिन घी का सेवन करने का विशेष महत्व माना जाता है।

फूल संक्रांत – सावन माह की शुरुआत में उत्तराखंड का पारंपरिक त्योहार फूल देई आयोजित की जाती है। इस दिन सभी बच्चों द्वारा गांव के सभी घरों के देहलियों में फूल फेंके जाते है और घर की महिलाओं द्वारा उन्हें अनाज एवं अन्य चीज़ें दी जाती है।

पंचमी – पंचमी जिसे उत्तराखंड में उत्तरेनी के नाम से भी जाना जाता है। इस लोक पर्व के दिन जौ के पत्तों की पूजा करके उन्हें मंदिर में चढ़ाया जाता है।

गंगा दशहरा – गंगा दशहरा उत्तराखंड के लोगों में से एक है यह हर वर्ष जेष्ठ दशमी को मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन ब्राह्मण अपने यजमानों को दशहरा पत्र देते हैं। जिसे घर की देहलियोँ पर लगाने का रिवाज है।

कलाई – कलाई उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र के लोगों का प्रमुख त्योहार है। कुमाऊं के लोगों द्वारा फसल काटने के उपलक्ष में कलाई त्यौहार मनाया जाता है।

जांगड़ा – जांगड़ा त्योहार महासू देवता का त्यौहार है। जोकि भाद्र मास में हर वर्ष बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। बिहार में महासू देवता को स्नान कराया जाता है।

उत्तराखंड राज्य के प्रमुख मेले एवं पर्व . Major Fairs and Festivals of Uttarakhand State

जिस तरह से उत्तराखंड में अनेक प्रकार के त्योहार मनाए जाते हैं ठीक उसी तरह से उत्तराखंड राज्य में मेलों का आयोजन भी बड़े ही धूमधाम के साथ किया जाता है। आमतौर पर यह मिले किसी व्यक्ति विशेष एवं स्थान से जुड़े हुए होते हैं जिसके इतिहास एवं महत्व को संजोने के लिए उत्तराखंड के लोग मेलों का आयोजन किया करते हैं। इन मेलों के माध्यम से उत्तराखंड की संस्कृति एवं परंपराओं की झलक प्रस्तुत होने के साथ-साथ स्थानीय विक्रेताओं को व्यापार का एक मंच प्राप्त होता है।

नंदा देवी मेला – प्रसिद्ध नंदा देवी मेला हिमालय की पुत्री बिंदा देवी की पूजा अर्चना के लिए प्रत्येक वर्ष भादर शुक्ल पक्ष की पंचमी को हर्ष और उल्लास के साथ आयोजित की जाती है। प्रसिद्ध नंदा देवी का मेला गढ़वाल एवं कुमाऊँ दोनों मंडलों में आयोजित किया जाता है।

सोमनाथ मेला – सोमनाथ मेला उत्तराखंड राज्य के अल्मोड़ा राम गंगा के तट पर वैशाख महीने के अंतिम रविवार को सोमनाथ का मेला आयोजित किया जाता है।

स्याल्दे बिखौती मेला – अल्मोड़ा जिले के द्वारहाट में प्रत्येक वर्ष बेशाख माह के पहले दिन स्याल्दे बिखौती मेला आयोजित किया जाता है। यह मेला कस्तूरी शासनकाल से मनाया जाता है।

श्री पूर्णागिरी मेला – उत्तराखंड राज्य के चंपावत टनकपुर के पास अन्नापूर्ण शिखर स्थित श्री पूर्णागिरी मंदिर में है प्रतिवर्ष चैत्र व अश्विन माह के नवरात्रों में पूर्णागिरि का मेला आयोजित किया जाता है। यह मेला 30 से 40 दिनों तक चलता है।

जौलजीबी मेला – उत्तराखंड राज्य के पिथौरागढ़ जिले में प्रति वर्ष 14 से 19 नवंबर तक जौलजीबी मेला लगता है। इस मेले में जोहार, दारमा, व्यास आदि जनजाति के लोग बहुत संख्या में शामिल होते हैं।

माघ मेला – उत्तराखंड के उत्तरकाशी नगर में प्रति वर्ष 14 जनवरी को माघ मेला आयोजित किया जाता है। प्रसिद्ध माघ मेला 8 दिनों तक चलने वाला मेला है जिसमें खंडार देवता की डोली वह हरि महाराज के ढोल के साथ शुभारंभ किया जाता है।

श्रावणी मेला – श्रावणी मेला उत्तराखंड राज्य के अल्मोड़ा जिले के जोगेश्वर धाम में प्रतिवर्ष सावन माह में आयोजित किया जाता है यह मेला 1 महीने तक चलता है। जोगेश्वर मंदिर में आयोजित होने वाले इस मेले के बारे में बताया जाता है कि महिलाएं संतान प्राप्ति के लिए रात भर घी का दिया हाथ में लेकर पूजा अर्चना करती है।

गौचर मेला – गौचर मेला उत्तराखंड के प्रसिद्ध मेले में से एक है जो कि उत्तराखंड राज्य के चमोली जिले में आयोजित किया जाता है। यह मेला पंडित जवाहरलाल नेहरू के जन्मदिन पर आयोजित होने वाले ऐतिहासिक मेलों में से एक है। मेले में उत्तराखंड की संस्कृति एवं परंपराओं की झलक प्रदर्शित की जाती है।

उत्तरायणी का मेला – हर वर्ष मकर सक्रांति के शुभ अवसर पर गढ़वाल एवं कुमाऊं क्षेत्र के लोगों द्वारा उत्तरायणी मेला आयोजित किया जाता। गोमती एवं सरयू नदी के संगम पर यह मेला कई दिनों तक आयोजित किया जाता है।

उत्तराखंड के प्रमुख चित्रकला शैली. Major painting styles of Uttarakhand

उत्तराखंड की चित्रकला शैली उत्तराखंड की संस्कृति का एक अंग है जोकि यहां की संस्कृति को प्रदर्शित करती है। उत्तराखंड चित्रकारिता का इतिहास प्राचीन हैं। लेकिन आज भी बहुत से जगह पर यह चित्र कलाएं देखने को मिल जाती है। चित्रकला की विभिन्न सी शैलियां मौजूद है जो की निम्न प्रकार से हैं।

ऐपण चित्र शैली – ऐपण चित्र शैली का उपयोग मुख्य रूप से चौकी एवं दहलीज को सौंदर्य प्रदान करने के लिए बनाई जाती है। खास तौर पर
ऐपण चित्र शैली का उपयोग धार्मिक अनुष्ठानों एवं मांगलिक कार्यों के शुभ अवसर पर किया जाता है।

बसोली चित्र शैली – इस चित्र शैली में मुख्य रूप से प्राकृतिक सुंदरता का प्रस्तुतीकरण किया जाता है। लगभग सन 1950 में बसोली चित्रकला शैली सामने आए। इस शैली के चित्रों में मुगल कला का संबंध देखने को मिलता है।

पोथी चित्रण – पोथी चित्रण शैली का उपयोग पुरोहितों द्वारा उपयोग में लाई जाती हैं। इतिहास से ज्ञात होता है कि इस विशिष्ट शैली का उपयोग जन्म कुंडली एवं पंचायत बनाने के लिए किया जाता था।

गुलेर चित्र शैली – गुलेर चित्र शैली उत्तराखंड की प्राचीनतम चित्रकला शैलियों में से एक है। कांगड़ा कलम चित्र शैली के नाम से भी जाना जाता है। इस शैली के चित्रकार राजा हरिश्चंद्र के कार्य अवधि के माने जाते हैं।

ज्यूंति मातृका चित्र – एक शैली के चित्रों में मुख्य रूप से देवी देवताओं एवं भगवान के रूपों का चित्रण किया जाता था। चित्रकारा द्वारा विभिन्न प्रकार के रंगों से लकड़ी एवं कपड़ों पर यह शैली प्रदर्शित की जाती थी।

उत्तराखंड के चार छोटे धाम. The four small dhams of Uttarakhand

जैसा कि हम सभी लोग जानते हैं कि उत्तराखंड भारत का एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है न केवल यह प्राकृतिक सौंदर्य के लिए जाना जाता है अभी तो भारत के चार छोटे धामों का घर भी उत्तराखंड ही है। उत्तराखंड के चार प्रमुख स्थानों में बद्रीनाथ, केदारनाथ एवं यमुनोत्री, गंगोत्री शामिल। भारतीय इतिहास एवं पौराणिक कथाओं में मैं चार धाम यात्रा का बड़ा महत्व माना जाता है। धार्मिक ग्रंथों में इन छोटे चार धामों का उल्लेख भी देखने को मिलता है। देवों की निवास स्थली होने के कारण उत्तराखंड को देवभूमि की संज्ञा भी दी जाती है।

केदारनाथ धाम. Kedarnath Dham

भारत के चार छोटे धामों में से एक केदारनाथ धाम उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले के अंतर्गत आता है। यहां हर साल लाखों की संख्या में श्रद्धालुओं का आवागमन होता है बताना चाहेंगे कि यह 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। प्रसिद्ध केदारनाथ मंदिर समुद्र तल से 11746 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। जोकि अपने विशाल शिव मंदिर के लिए जाना जाता है। इस प्रसिद्ध मंदिर का निर्माण कत्यूरी शैली के अंतर्गत कटमा पत्थरों के विशाल शिलाखंड को जोड़कर किया गया है।

बद्रीनाथ धाम. Badrinath Dham

बद्रीनाथ धाम भारत के चार छोटे दामों में से एक है जो कि उत्तराखंड राज्य के चमोली जिले में एवं नारायण पर्वत के मध्य स्थित है। भगवान श्री विष्णु के अवतार बद्रीनारायण को समर्पित यह मंदिर 108 दिव्या देशमों में से एक हैं। समुद्र तल से 3133 मीटर की ऊंचाई पर स्थित बद्रीनाथ धाम मंदिर वैदिक काल का एक प्राचीन अविष्कार माना जाता है। प्रसिद्ध बद्रीनाथ मंदिर में भगवान विष्णु की बद्रीनारायण के रूप में पूजा की जाती है यह बद्री में से एक मंदिर है।

गंगोत्री धाम. Gangotri Dham

गंगा नदी के उद्गम स्थल को गंगोत्री धाम के नाम से जाना जाता है यह भारत के चार छोटे दामों में से एक है जो कि उत्तराखंड राज्य के उत्तरकाशी जिले में स्थित है। चार छोटे धामों की यात्रा में इसका ब पड़ाव दूसरे नंबर पर आता है। हिंदू धर्म में गंगोत्री को मोक्षदायिनी माना जाता है। किवदंती है कि यहां की यात्रा करके मनुष्य के इस जन्म के सारे पाप धुल जाते हैं। प्रसिद्ध में गंगोत्री धाम मंदिर समुद्र तल से 980 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। गंगोत्री धाम मंदिर के निर्माण विषय के बारे में बताया जाता है कि आदि गुरु शंकराचार्य के सम्मान में मंदिर का निर्माण कराया गया था।

यमुनोत्री धाम मंदिर., Yamnotri Dham

यमुनोत्री धाम मंदिर चार छोटे धामों में से एक है। चार धाम यात्रा का यह पहला पड़ाव रहता है जो कि देवी यमुना को समर्पित है। समुद्र तल से 4421 मीटर की ऊंचाई पर स्थित प्रसिद्ध यमुनोत्री धाम मंदिर काली पर्वत की चोटी पर बनी हुई है। मंदिर के निर्माण के बारे में बताया जाता है कि 1919 में टिहरी गढ़वाल के राजा प्रताप शाह ने यमुनोत्री धाम मंदिर की स्थापना की। यमुना नदी में स्नान मोक्ष प्राप्ति के समान माना गया है। कहा जाता है कि जो भी भक्त यहां पर स्नान करते हैं उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है।

उत्तराखंड की प्रमुख भाषाएं. Major languages ​​of Uttarakhand

उत्तराखंड की संस्कृति में वहां की भाषाओं का योगदान विशेष स्थान पर आता है। दरअसल राज्य के लोग वार्तालाप में अपनी बोली का उपयोग किया करते हैं। जिससे उत्तराखंड की संस्कृति एवं उत्तराखंड राज्य को एक उससे महत्व मिलता है तो चलिए जानते हैं उत्तराखंड में कौन-कौन सी प्रमुख भाषाएं बोली जाती है।

उत्तराखंड राज्य में मुख्य रूप से गढ़वाली एवं कुमाऊनी भाषा का उपयोग वार्तालाप के रूप में किया जाता है। दरअसल स्थानीय लोगों द्वारा जिस भाषा में वार्तालाप किया जाता है उन्हें स्थानीय बोली के नाम से भी जाना जाता है। गढ़वाली एवं कुमाऊनी बोली को भी मुख्य रूप से स्थानीय लोगों द्वारा अलग-अलग भागों में बांटा गया है।

पूर्वी कुमाऊनी बोलियां. Eastern Kumaoni Dialects

कुम्मयां – मुख्य रूप से यह बोली नैनीताल से लगे हुए काली कमाई क्षेत्र में बोली जाती है।

असकोटी – यह असकोटी क्षेत्र की बोली है इस पर नेपाली भाषा का प्रभाव पड़ा हुआ है।

शौर्याली – यह बेली जोहार और पूर्वी गंगोली क्षेत्र में बोली जाती है

पश्चिमी कुमाऊनी बोलियां. Western Kumaoni Dialects

पछाई – यह अल्मोड़ा जिले के दक्षिणी भाग में बोली जाती है। यहां तक कि गढ़वाल के कुछ क्षेत्र में भी यह बोली बोली जाती है।

दनपुरिया – यह बोले मुख्य रूप से दानापुर किए उत्तरी भाग में बोली जाती है।

जौहरी – जौहरी बोली उत्तराखंड के जौहर व कुमाऊं के उत्तर स्मृति क्षेत्रों में बोली जाती है।

कुमाऊं के प्रमुख साहित्यकार. Prominent writers of Kumaon

  • गुमानी पंत
  • कृष्ण पांडे
  • चिंतामणि जोशी
  • लीलाधर जोशी
  • शिवदत्त सती
  • गंगाधर उपरेती

गढ़वाली बोली. Garhwali dialect

जैसा कि हम आपको पहले ही बता चुके हैं कि उत्तराखंड में विभिन्न प्रकार की बोलियां बोली जाती है और यह बोलियां स्थानीय लोगों के वार्तालाप से समाज में आएं। बोली की दृष्टि से ही गढ़वाली को डॉक्टर ग्रियर्सन ने 8 भागों में विभाजित किया है। श्रीनगर, नागपुरिया, सैलानी, की हरियाली आदि प्रमुख हैं।

गढ़वाल के प्रमुख साहित्यकार. Prominent writers of Garhwal

  • चंद्रमोहन रतूड़ी
  • सत्यनारायण रतूड़ी
  • आत्माराम गोरोला
  • सत्य शरण

उत्तराखंड राज्य के प्रमुख व्यक्ति. Prominent person of Uttarakhand state

जिस तरह से उत्तराखंड को एक पहचान दिलाने में हर एक चीज का अपना अपना योगदान है ठीक उसी तरह से उत्तराखंड में कुछ ऐसे भी दिव्य आत्माओं ने जन्म लिया जिनकी बदौलत से आज उत्तराखंड देश विदेशों में भी मशहूर है। और न केवल मशहूर है बल्कि आज अपनी संस्कृति एवं परंपराओं को संजोया हुआ भी है।

बद्री दत्त पांडे

बद्री दत्त पांडे जी का जन्म 15 फरवरी 1882 को हरिद्वार में हुआ। इन्होंने अंग्रेजी शासन के प्रति देखें और व्यंग्यात्मक लिखो से प्रहार किया। जिनके कारण कारण यह उत्तराखंड में बहुत प्रसिद्ध हुए।

हेमवती नंदन बहुगुणा

धरतीपुत्र के नाम से विख्यात हेमवती नंदन बहुगुणा जी का जन्म 25 अप्रैल 1919 को पौड़ी के बुधारी गांव में हुआ था। अंग्रेजों के द्वारा किए गए अत्याचारों को कम करने एवं आवाज उठाने के लिए हेमंती नंदन बहुगुणा का योगदान विशेष स्थान पर आता है।

जिया रानी

जिया रानी घुमाओ की लक्ष्मी बाई के नाम से भी जानी जाती है। कुमाऊं पर रोहिल्ला और तुर्कों के आक्रमण के दौरान रानी बाग युद्ध में उनका डटकर मुकाबला किया था। कुमाऊं के इतिहास में इन्हें न्याय की देवी भी माना जाता है।

रानी कर्णावती

1531 के अल्मोड़ा युद्ध में महिपति का देहावसान हो जाने के पश्चात उनकी पत्नी कर्णावती ने अपने पुत्र युवराज के वयस्क होने तक राज्य का शासन संभाला। उत्तराखंड के इतिहास में इन्हें नाक काटने वाली रानी के नाम से भी जाना जाता है।

यह भी पढ़ें – 

उत्तराखंड के प्रमुख बोलियां.

डाट काली मंदिर देहरादून

नरसिंह देवता उत्तराखंड

मुक्तेश्वर महादेव मंदिर उत्तराखंड.

शीतला माता मंदिर उत्तराखंड.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *