उत्तराखंड की पवित्र नदियां, Uttarakhand Ki Nadiya

Uttarakhand Ki Nadiya
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हेलो दोस्तों स्वागत है आपका देवभूमि उत्तराखंड के आज के नए लेख में । आज हम उत्तराखंड के नदियों के बारे में जानकारी देने वाले हैं। आज के इस लेख में हम आपको उत्तराखंड की प्रमुख नदियों ( Uttarakhand Ki Nadiya ) के बारे में जानकारी देने वाले हैं आशा करते हैं कि आपको यह लेख जरूर पसंद आएगा इसलिए इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ना।

उत्तराखंड की पवित्र नदी काली. Uttarakhand Ki Pavitr Nadi Kaali

काली नदी जिसे महाकाली काली गंगा या शारदा के नाम से भी जाना जाता है, भारत के उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश राज्यों में बहने वाली एक नदी है इस नदी का उद्गम स्थान ब्रदर हिमालय में 3600 मीटर की ऊंचाई पर स्थित कालापानी नामक स्थान पर है जो उत्तराखंड राज्य के पिथौरागढ़ जिले में स्थित है.

काली माता के नाम पर इस नदी का नाम जिनका मंदिर काला पानी में लिपुलेख दर्रा के निकट भारत और तिब्बत की सीमा पर स्थित है
यह नदी नेपाल के साथ भारत अपने ऊपर ही मार्ग पर निरंतर पूर्वी सीमा बनाती है जहां इसे महाकाली कहा जाता है यह नदी उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के मैदानी क्षेत्रों में पहुंचने पर शारदा नदी के नाम से भी जानी पहचानी जाती है काली नदी का झुकाव लगभग 14260 वर्ग किलोमीटर है जिसका एक बड़ा हिस्सा लगभग 1143 वर्ग किमी उत्तराखंड में है और शेष नेपाल में है

Uttarakhand Ki Nadiya

उत्तराखंड राज्य की चार प्रमुख नदियों में काली नदी एक use है और इसके कारण इसे उत्तराखंड के राज्य चिन्ह पर भी दर्शाया गया है यह नदी काला पानी में 3600 मीटर से उतर कर 200 मीटर ऊंचे तराई मैदानों में प्रवेश करती है और इस कारण यह जल विद्युत उत्पादन के लिए अपार संभावना उपलब्ध कराती है भारतीय नदियों में इंटर लिंक करने की परियोजना के हिमालय भी घटक में कई परियोजनाओं के लिए इस नदी को भी स्रोत के रूप में प्रस्तावित किया जाता है सरयू नदी काली की सबसे बड़ी सहायक नदी है कुट्टी धौलीगंगा गौरी चमेलिया रामगढ़ लड़िया अन्य प्रमुख सहायक नदियां हैं धारचूला तवाघाट जौलजीबी झुलाघाट पंचेश्वर टनकपुर बनबसा तथा महेंद्र नगर इत्यादि नदी के ऊपर पर बसे प्रमुख नगर है

उत्तराखंड की पवित्र नदीअलकनंदा नदी. Uttarakhand Ki Nadi Alaknanda

अलकनंदा नदी गंगा की सहयोगी नदी है
प्राचीन नाम विष्णु गंगा उद्गम संतो पंथ ग्लेशियर संतो पंत लाल क्षीरसागर के अलकापुरी बैंक
सहायक नदियां सरस्वती ऋषि गंगा लखमण गंगा पश्चिमी धौलीगंगा बिरही गंगा पातालगंगा गरुण गंगा नंदाकिनी पिंडर मंदाकिनी

यह गंगा के 4 नामों में से एक है चार धामों में गंगा के कई रूप और नाम है गंगा को गंगोत्री में भागीरथी के नाम से जाना पहचाना जाता है केदारनाथ में मंदाकिनी और बद्रीनाथ में अलकनंदा यह उत्तराखंड में संतो पंत और भागीरथ खड़क नामक हेमन दो से निकलती है यह स्थान गंगोत्री कहलाता है और अलकनंदा नदी घाटी में लगभग 195 किलोमीटर तक बहती है देवप्रयाग में अलकनंदा और भागीरथी का संगम होता है और इसके बाद अलकनंदा नाम समाप्त होकर केवल गंगा नाम रह जाता है अलकनंदा रुद्रप्रयाग चमोली टिहरी और पौड़ी जिले में होकर गुजरती है गंगा के पानी में इसका योगदान भागीरथी से अधिक है हिंदुओं का प्रसिद्ध तीर्थ स्थल बद्रीनाथ अलकनंदा के तट पर ही बसा हुआ है सहासिक नौका खेलों के लिए यह नदी बहुत लोकप्रिय मानी जाती है देखा जाए तो तिब्बत की सीमा के पास केशव प्रयाग स्थान पर यह आधुनिक सरस्वती नदी से मिलती जुलती है केशव प्रयाग बद्रीनाथ से कुछ ऊपर पर मौजूद है

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उत्तराखंड की पवित्र नदी भागीरथी नदी. Uttarakhand Ki Nadi Bhagirathi

भागीरथी उत्तराखंड राज्य में बहने वाली एक नदी है भागीरथी यह देवप्रयाग मैं अलकनंदा से मिलकर गंगा नदी का निर्माण करती है भागीरथी का उद्गम स्थल उत्तरकाशी जिले में गोमुख गंगोत्री ग्लेशियर है

भागीरथी यहां 24 किलोमीटर लंबे गंगोत्री हिमनद से मिलती है 204 किलोमीटर बहने के बाद भागीरथी और अलकनंदा का देवप्रयाग में मिलन होता है जिसके पश्चात वह गंगा के रूप में जानी पहचानी जाती है
यह गंगा भागीरथी गोमुख स्थान से 25 किलोमीटर लंबे गंगोत्री हिमनद से निकलती है यह स्थान उत्तराखंड राज्य में उत्तरकाशी जिले में है यह लगभग समुद्र तल से 618 किलोमीटर की ऊंचाई पर ऋषिकेश से 70 किलोमीटर दूरी पर स्थापित है

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उत्तराखंड की नदी कोसी नदी. Uttarakhand Ki Nadi Kosi

हिमालय से निकलती है कोसी नदी नेपाल में और बिहार में भीम नगर के रास्ते से भारत प्रज्वल में दाखिल हो जाती है इसके आने वाली बाढ़ से बिहार में बहुत-बहुत दवाई हो जाती है जिससे इस नदियों को बिहार का अभिशाप बिहार का शोक कहा भी जाता है

इसके भौगोलिक स्वरूप को देखा जाए तो पता चलता है कि पिछले 250 सालों में 120 किलोमीटर का विस्तार कर चुकी है हिमालय की लगभग ऊंचाई पहाड़ियों से तरह-तरह के अवसाद बालू कंकड़ पत्थर अपने साथ लाते हुए नदी निरंतर अपने क्षेत्र में फैला जाती है उत्तरी बिहार में मैदानी इलाकों को प्रतिनिधि पूरा क्षेत्र उपजाऊ बनाती जाती है नेपाल और भारत दोनों ही देश इस नदी पर बांध बना चुके हैं हालांकि कुछ पर्यावरण इससे नुकसान की संभावना की जाती थी
यह नदी उत्तर बिहार के मिथिला क्षेत्र की संस्कृति पालना भी है कोशी के आसपास के क्षेत्रों को इसी के नाम पर कोसी कहा जाता है
काठमांडू से एवरेस्ट की ऊंचाई के लिए जाने वाले रास्ते में कोसी की 4 सहायक नदियां मिलती है तिब्बत की सीमा से लगा नामचे बाजार कौशी के पहाड़ी रास्ते का पर्यटन के हिसाब से सबसे आकर्षक स्थान है अरुण, तमोर, लिखूं , तामाकोशिश , दूधकोशी, सुन कोसी, इंद्रावती इसकी प्रमुख सहायक नदियां है

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नेपाल में यहां कंचनजंगा के पश्चिम में पढ़ती है नेपाल के हरकपुर में कौशि की दो सहायक नदियां दूध कोशी तथा सनकोशी मिलती है संकोशी अरुण प्रज्वल तमर नदियों के साथ त्रिवेणी में मिलती है जिसके बाद यह नदी को सप्तकोशी कहा जाता है तथा वराह क्षेत्र में यह तराई क्षेत्र में प्रवेश करती है और इसके बाद से इसे कोशी या कोसी भी कहा जाता है इसकी सहायक नदियां एवरेस्ट के चारों ओर से आग कर एक साथ मिलती है और यह विश्व के ऊंचाई पर स्थापित है ग्लेशियरों हिमनदों के जल लेती है त्रिवेणी के पास नदी के बैग से एक कद्दू बनाती है जो कई 10 किलोमीटर लंबी है भीम नगर के निकट यह भारतीय सीमा में दाखिल हो जाती है इसके बाद दक्षिण की ओर 260 किलोमीटर चलकर कुर्सेला के पास गंगा में सम्मिलित हो जाती है


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