हेलो दोस्तों स्वागत है आपका भी देवभूमि उत्तराखंड के आज के नए लेख में। आज के इसलिए के माध्यम से हम आप लोगों के साथ उत्तराखंड का प्रसिद्ध मंदिर ताड़केश्वर महादेव मंदिर के बारे में जानकारी ( Tadkeshwar Mahadev Temple ) देने वाले हैं। दोस्तों जैसा कि हम सभी लोग जानते हैं कि उत्तराखंड में अन्य को ऐसे मंदिर है जो अपने आध्यात्मिक शक्ति के अलावा अपने इतिहास के लिए भी पहचाने जाते हैं। उन्हें मंदिरों में से एक है उत्तराखंड का ताड़केश्वर महादेव मंदिर जो अपने दिव्य शक्तियों एवं इतिहास के लिए पहचाना जाता है। आज के इस लेख में हम आपको ताड़केश्वर महादेव मंदिर के बारे में संपूर्ण जानकारी देने वाले हैं। आशा करते हैं कि आपको यह लेख पसंद आएगा।
ताड़केश्वर महादेव मंदिर उत्तराखंड.Tadkeshwar Mahadev Temple Uttarakhand
भगवान शिव जी को समर्पित ताड़केश्वर महादेव मंदिर उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले में स्थित है। पौड़ी गढ़वाल के जहरीखाल नामक विकासखंड में चखुल्या खाल के पास स्थित है। ताड़केश्वर महादेव मंदिर ( Tadkeshwar Mahadev Temple ) लैंसडाउन से लगभग 38 किलोमीटर की दूरी पर एवं कोटद्वार से लगभग 70 किलोमीटर की दूरी पर बसा हुआ है। यदि बात की जाए मंदिर की ऊंचाई की तो मंदिर समुद्र तल से 1800 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है खूबसूरत से देवदार और बांज, बुरांश के पेड़ों की छांव में बसा हुआ यह प्रतिष्ठ मंदिर 5 शौवपीठ में से एक है। 5 शैव पीठों में एकेश्वर महादेव, बिंदेश्वर महादेव, क्यूंकालेश्वर महादेव, एवं किलकिलेश्वर महादेव मंदिर शामिल है।
वैसे तो भगवान भोलेनाथ के इस पावन धाम में भक्तो का आवागमन लगा रहता है लेकिन खास तौर पर शिवरात्रि के दिन यहां पर भव्य मेले का आयोजन किया जाता है। इसके आसपास खूबसूरत से पेड़ पौधे पाए जाने के कारण यहां आने वाले श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक शक्ति के अलावा प्राकृतिक सौंदर्य के दर्शन भी हो जाते हैं।
दोस्तों आपके पास यह सवाल तो जरूर होगा कि आखिर ताड़केश्वर महादेव मंदिर का नाम कैसे पड़ा ( Tadkeshwar Mahadev Temple ) । इसके पीछे की कहानी में माना जाता है कि भगवान भोले नाथ ने ताड़कासुर नमक असुरराज का अंत यहीं पर किया था। इसलिए मंदिर का नाम ताड़केश्वर महादेव मंदिर रखा गया।
ताड़केश्वर महादेव मंदिर पौराणिक कथाएं। Tadkeshwar Mahadev Temple Stories
ताड़केश्वर महादेव मंदिर की पौराणिक कथाओं के अनुसार माना जाता है कि तारकासुर का वध करने के बाद भगवान शिव जी यहां पर आराम करने के लिए आए थे और सूर्य की गर्मी से बचने के लिए मां पार्वती ने यहां देवदार के वृक्ष लगाए थे। किवदंतियों के आधार पर यह भी माना जाता है कि मां पार्वती ने स्वयं यहां स्वयं देवदार के पेड़ों का रूप धारण किया था।
अगली पौराणिक कथा के अनुसार माना जाता है ( Tadkeshwar Mahadev Temple Stories ) कि असुरराज तारकासुर की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव जी ने उन्हें अमर तत्व का वरदान दे दिया था। इसमें केवल एक शर्त थी की भगवान शिव जी की पुत्री ही उनका वध कर पाएगी।
ताड़केश्वर वरदान स्वीकार कर लिया और इसके बाद तारकासुर का स्वभाव पहले से कई ज्यादा कुर होने लगा। तारकासुर ने निर्दोष लोगों और साधुओं को मारना शुरू कर दिया था। जिसे तंग आकर सभी साधु भगवान शिव जी की शरण में पहुंचे और फिर भगवान शिव ने माता पार्वती से विवाह किया और कार्तिकेय का जन्म हुआ। ऐतिहासिक कहानियां के आधार पर माना जाता है कि तारकासुर का अंत भी भगवान शिव जी के पुत्र कार्तिकेय ने किया था।
माना जाता है कि तारकेश्वर ने भगवान शिव जी का ध्यान किया और उनसे क्षमा मांगी। भगवान भोलेनाथ ने उन्हें वरदान दिया कि कलयुग में लोग यहां ताड़केश्वर महादेव के नाम से पूजा करेंगे। और आज के समय में जिस स्थान पर तारकासुर ने तपस्या की थी वहीं पर यह प्रसिद्ध मंदिर स्थापित है।
तारकेश्वर महादेव मंदिर की मान्यताएं.Beliefs of Tarakeshwar Mahadev Temple
दोस्तों जिस तरह से हर किसी मंदिर एवं आध्यात्मिक स्थल के पीछे ऐतिहासिक मान्यताएं छुपी हुई होती है ठीक उसी तरह से तारकेश्वर महादेव मंदिर के बारे में किवदंति है कि तारकेश्वर महादेव ने अपने भक्तों के सपने में आकर यहां पर मंदिर बनाने का आवास दिया था। ( Beliefs of Tarakeshwar Mahadev Temple) इसके बावजूद लोगों ने यहां पर मंदिर का निर्माण किया। ऐतिहासिक एवं आध्यात्मिक मंदिर में भगवान भोलेनाथ की अनुपम प्रतिमा विद्यमान है। जिसमें वह तांडव करते हुए दिखाए गए हैं।
माता लक्ष्मी ने खोदा था कुंड
प्यार पाठकों ताड़केश्वर महादेव मंदिर के परिसर में एक कुंड स्थापित है इस कुंड के बारे में पौराणिक मान्यता है की माता लक्ष्मी ने स्वयं इस कुंड को खोदा था। ( Beliefs of Tarakeshwar Mahadev Temple) इस कुंड के पवित्र जल का उपयोग मंदिर की शिवलिंग के जलाभिषेक के लिए किया जाता है। स्थानीय लोगों का मानना है कि इस मंदिर में सरसों का तेल और साल के पत्तों का लाना वर्जित है।
भक्तों की मनोकामना पूरी होने पर भेट करते हैं घंटी
भगवान भोलेनाथ को समर्पित तारकेश्वर महादेव मंदिर उत्तराखंड के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है माना जाता है कि जो भी भक्त यहां पर सच्चे मन से कामना करते हैं भगवान भोलेनाथ उनको खाली हाथ नहीं भेजते हैं और जब भक्तों की मनोकामना पूरी हो जाती है तो भेट के स्वरुप वह मंदिर में घंटियां बांधते हैं। मंदिर में मौजूद घटिया के आधार पर इस मंदिर की मान्यता के बारे में जाना जा सकता है। जो कि भगवान शिव जी के प्रति भक्तों के अटूट विश्वास का प्रमाण देते हैं।
इसलिए पड़ा था मंदिर का नाम तारकेश्वर महादेव मंदिर
भगवान भोलेनाथ ने असुर राज तारकासुर को अंत समय में क्षमा किया और वरदान दिया कि कलयुग में इस स्थान पर मेरी पूजा तुम्हारा नाम से होगी और मेरे नाम से पहले भक्त तुम्हारा नाम लेंगे। इसलिए इस दिव्य मंदिर का नाम तारकेश्वर महादेव मंदिर ( Tarakeshwar Mahadev Temple) रखा गया।
ताड़केश्वर महादेव मंदिर कैसे जाएं
ताड़केश्वर महादेव मंदिर सड़क मार्ग से लगभग 1 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। और तारकेश्वर महादेव मंदिर लैंसडाउन से 38 किलोमीटर की दूरी पर एवं कोटद्वार से 70 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। सड़क मार्ग के द्वारा तारकेश्वर महादेव मंदिर आराम से पहुंचा जा सकता है।
दोस्तों यह था हमारा आज का लेख जिसमें हमने आपको तारकेश्वर महादेव मंदिर के बारे में ( Tarakeshwar Mahadev Temple) जानकारी दी। आशा करते हैं कि आपको तारकेश्वर महादेव मंदिर का इतिहास एवं पौराणिक मान्यताओं के बारे में जानकारी मिल गई होगी। आपको यह लेख कैसा लगा हमें टिप्पणी के माध्यम से बताएं और यदि आपको यह लेख पसंद आया है तो अपने दोस्तों और परिवार के साथ जरूर साझा करें। उत्तराखंड से संबंधित ऐसे ही जानकारी युक्त लेख पाने के लिए आप देवभूमि उत्तराखंड को जरूर फॉलो करें।
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