जौ सम्बंधित त्यौहार संस्कृति से उत्तराखंड का कृषक एक वर्गीय ऋतू उत्सव है। वैसे अब इसे बसंत पंचमी या श्री पंचमी के साथ जोड़ दीया जाता है। परन्तु इनके नाम से स्पष्ट है यह एक सांस्कृतिक पर्व था। जो इस चन्द्रमासृत तारिक को पड़ने वाली और संक्रांति को मनाया जाता था। बसंत पंचमी यहाँ पर श्री अप्रवासी लोगो द्वारा आयातित संस्कृति की देंन है। जब की जौ त्यौहार पहाड़ की ( Jou Touhaar Uttarakhand) मौलिक कृषक संस्कृति का अपना ऋतूत्सव है।
विदित है की बसंत ऋतू के आगमन पर खरीफ फसल की मुख्या धान्य जो की अंकुर पल्वित हो उठते है जो लहराते पहाड़ के खेतो को देख कर किसानो का मन खुश हो जाता है। पहाड़ के गांव के किसान अपने कुल देवताओं अपने ईस्ट देवताओं को उनकी कृपा से पल्वित हो रही फसल के आभार और प्रकृतिक एवंम कृतिम संकट से रक्षा की कामना करते हुए कोमल पत्तियां उनको अर्पित करके पूजा करते है और उन्हें अर्पित जौ का कुछ प्रसाद के रूप में अपने और अपने परिवारजनों में उनको धारण करते है।
जौ त्यौहार उत्तराखंड में महत्वा. Jou Touhaar Uttarakhand Mahatwa
इसके साथ साथ सबकी घर की रक्षा और मंगल कामनाओ के लिए सब परिवार जानो के सिरों पर यव पललव जो की कोपले रखते है इन्हे ज्येष्ठों को लड़कियां इन्हे अर्पित करती है आशीर्वाद और दक्षिणा प्राप्त करती है। जो की देवताओं को अर्पित कोपलों को पुरुष अपनी टोपी पर रखते है। और महिलाये अपने जुड़े और धमेली पर सजाते है। इसके अलाव घर की मंगलकामना के लिए घर के सारे दरवाजे पर गाय के गोबर से की पत्तियां लगाई जाती है। पहाड़ में यह दिन शुभ माना जाता है।
शुभ कार्य बिना इस दिन सारे मुहूर्त के किये जाते है। जो की बालिकाओं के घर त्यौहार के दिन कान नाक छिदवाये जाते है। यगोपवीत संस्कार किया जाता है। इसके अलाव शादियों की सगाई इस दिन शादी की तारीख निकली जाती है। कुमाऊं मंडल में इस दिन से होली शुरू हो जाती है और श्री पंचमी और बसंत पंचमी यहाँ के लोकउत्सव न होकर नगरीय उत्सव है। जबकि जौ सज्ञान जौ त्यार उत्तराखंड ( Jou Touhaar Uttarakhand) के लोग पर्व है।