अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उत्तराखंड क्षेत्र का चिपको आंदोलन एक मानदंड के रूप में स्थापित आंदोलन माना जाता है। चिपको आंदोलन ने ही उत्तराखंड राज्य (Chipko Andolan Uttarakhand) की मांग के लिए वास्तविक जगह तैयार की।
वृक्षों को बचाने के लिए चिपको नाम का सूत्रपात सन 1973 में गढ़वाल हिमालय में स्वतंत्र रूप से हुआ परंतु इससे पूर्व बिना किसी का नाम इस तरह की विधि पेड़ों को काटने से बचाने के लिए उनसे चिपकने का उपयोग 250 साल पूर्व राजस्थान के खेजडली गांव में हो चुका था। पूरा उत्तराखंड में चिपको आंदोलन (Chipko Andolan Uttarakhand)अपने तरह से चला। इस आंदोलन की शुरुआत 15 दिसंबर सन 1972 में श्री परमानंद की अध्यक्षता में एक आम सभा अंगू के पेड़ो को लेकर हुई । तरफ से जब वन विभाग ने एक तरफ से ब्राह्मणों को परंपरा से अंगू की लकड़ी से बनाए जाने वाले अन्य कृषि यंत्रों के लिए जुआ एवं यंत्रों के लिए मना कर दिया था। विदेशी मुद्रा अर्जित करने के लिए उधर दूसरी तरफ से वन विभाग ने बहुत बड़े पैमाने पर अंगू आदि पेड़ काटे।
इस प्रकार वन और जन इससे ग्रामीणों की भावनाएं भड़कने लगी विरोधी नीति का विरोध शुरू हुआ। इसके अंतर्गत बनो को बचाने के लिए पेड़ो पर चिपकने की शुरुआत में ग्राम दसोली मंडल का स्वराज्य सर्वाधिक योगदान रहा। इसकी स्थापना 1962 में श्री चंडी प्रसाद भट्ट द्वारा की गई। वन उत्पादों पर आधारित लागू उधोंगो की इस्थापना करने को लेकर की गई थी। चिपको आंदोलन में सर्वप्रथम घटना 14 अप्रैल सन 1973 को मंडली गांव में घटित हुई थी।
जब साइमन कंपनी रैकेट बनाने की कंपनी जिसे सरकार द्वारा पेड़ काटने का ठेका मिला था इसके एजेंट पेड़ काटने आए तो उसके पूरे गांव के लोग जंगल में पहुंच गए जिससे कंपनी वालों को पेड़ काटने के लिए नहीं मिला। इसी प्रकार ग्रामीणों ने चंडी प्रसाद भट्ट के नेतृत्व में पेड़ों को काटने से बचाया इस प्रकार सन 1974 में महिलाओं द्वारा प्रख्यात रेणु चिपको आंदोलन (Chipko Andolan Uttarakhand) हुआ। महिलाओं के इस घटना के बाद यह आंदोलन चलाया गया जिस कारण कई क्षेत्रों में वन काटने का कार्य रोका गया।
प्रख्यात रेडी का ऐतिहासिक चिपको आंदोलन घटनाक्रम।
इस घटनाक्रम में मार्च सन 1974 में रेड़ी गांव के जंगल को सरकार ने भारी संख्या में वन्य काटने के लिए छापा लगाया 21 मार्च सन 1974 में रेड़ी गांव के पुरुष भूमि मुहावजे के संबंध में चमोली गए थे। और उसी दिन वन विभाग के कर्मचारियों ने पेड़ों को काटने के लिए हमला बोल दिया। यह खबर चिपको कार्यकर्ती गौरा देवी तक पहुंची तो वे तुरंत गांव की महिलाओं को और तकरीबन 30 बच्चो सहित उस जंगल में पहुंच गई तथा पेड़ काटने वालों से कहां की यह जंगल हमारा माया का है और पुरुषों की अनुपस्थिति में यह कार्य ना करने को कहा गया। परंतु जब पेड़ काटने वालों ने उनकी बात नहीं सुनी तो वह पेड़ पर चिपक गई और बाकी महिलाएं भी पेड़ों पर चिपक गई और पेड़ काटने वालों को वापस जाना पड़ा। रेड़ी गांव की घटना अपने आप में अति महत्वपूर्ण मानी गई क्योंकि इसमें महिलाओं ने पुरुषों की अनुपस्थिति में सूझबूझ कर भादुरी से पेड़ों को काटने से बचाया। इस घटना के पश्चात सभी वैज्ञानिकों तथा वन विभाग और सरकार ने अपना ध्यान केंद्रित कर दिया। इस घटना के बाद सन 1975 में गोपेश्वर सन 1978 जनवरी श्री बद्रीनाथ आधी उनके क्षेत्रों में भी महिलाओं का प्रयास द्वारा पेड़ो को काटने से बचाया गया।
गौरा देवी का इस आंदोलन में बहुत ही योगदान माना गया। ( Gora Devi Chipko Andolan Uttarakhand ) अंतराष्ट्रीय जगत में चिपको आंदोलन वुमन नाम से प्रसिद्ध है गौरा देवी ने चिपको आंदोलन में ब्योहारिक रूप से महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
चिपको आंदोलन को अच्छा रूप देने में चंडी प्रसाद भट्ट वा सुंदरलाल बहुगुणा का योगदान भी माना जाता है।
इस प्रकार उत्तराखंड वासियों द्वारा वनों को काटने से बचाने के लिए चिपको आंदोलन वृक्ष स्तर (Chipko Andolan Uttarakhand) पर प्राप्त करने वाला आंदोलन के साथ उत्तराखंड आंदोलन प्रेरित करने वाला आंदोलन भी माना जाता है। रेड़ी गांव के घटना के बाद वन विभाग का कार्य रुकवा दिया गया।
इस प्रकार महिलाओं द्वारा चलाए जाने के कारण कई क्षेत्रों से वन काटने का कार्य को रोका गया। महिलाओं ने कई वनो से पेड़ों को काटने से बचाया।
जिसने कोई बहुत बड़ा संगठन ना बना कर पीड़ित लोगों ने स्थानीय संगठनों द्वारा जन आंदोलन प्रारंभ करने की परंपरा कायम की यह चिपको आंदोलन ही था। इस प्रकार चिपको आंदोलन विवेकपूर्ण सरकारी योजना के विरुद्ध आक्रोश था। और वनो को उजाड़ने की योजना बंद करवा दी गई थी। परतु फिर विवेकपूर्ण योजना इन पेड़ो को बचाने के लिए की गई थी। जिसके अंतर्गत सिविल बेनाप भूमि पेड़ की किसी बी परकार की टटायी प्रतिबंधित कर दी गई। वन संरक्षण नियम अधिनियम 1980 उत्तराखंड के वनों को प्रशासनिक दृष्टि से निम्न भागों में बांटा गया है। 1, वन विभाग 2, सिविल वन 3, नगरपालिका वन, 4,पंचायती वन,5, व्यक्ति बन। सन 1980 में वन अधिनियम के तहत वृक्ष कटान पर पूरा प्रतिबंध लगाया गया। अतः कोई काश्तकार एक वृक्ष खुद या देवा साइकिल व्यवसायिक उद्देश्य से काटना चाहता है। तो उसे अपना प्रार्थना पत्र पटवारी पेशकार कानूंगों तहसीलदार परघनाधिकारी जिला अधिकारी तथा वन फॉरेस्ट अधिकारी सहायक वन रक्षक आधी के हातो में देकर अनुमति लेनी होगी।