नमस्ते दोस्तों स्वागत है आपका देव भूमि उत्तराखंड के आज के नए लेख में आज हम आप लोगों के साथ बात करने वाले हैं जौलजीबी मेला के बारे में। जौलजीबी मेला उत्तराखंड के प्रसिद्ध मेलों में से एक है इसलिए यह अपने इतिहास एवं महत्व के लिए पूरे देश भर में मशहूर है। आज के इस लेख के माध्यम से हम जौलजीबी मेला के बारे में जानकारी साझा करने वाले हैं आशा करते हैं कि आपको हमारा यह लेख जरूर पसंद आएगा।
जौलजीबी का मेला. Jauljibi Mela Uttarakhand
प्रसिद्ध जौलजीबी का मेला उत्तराखंड राज्य के पिथौरागढ़ जिले में हर वर्ष बड़ी ही हर्ष एवं उल्लास के साथ आयोजित किया जाता है। उत्तराखंड संस्कृति की बहु पारदर्शिता छवि प्रस्तुतकर्ता यह मेला अपने इतिहास एवं महत्व के लिए जाना जाता है। प्रसिद्ध जौलजीबी का मेला पिथौरागढ़ नगर से 68 किलोमीटर की दूरी पर स्थित जौलजीबी नामक पर्यटन स्थल पर गौरा और काली नदी के संगम पर आयोजित किया जाता है।
जौलजीबी का मेला भारत एवं नेपाल के बीच व्यापार का एक केंद्र प्रस्तुत करता है। मेले में मुख्य रूप से भारत और नेपाल के बीच व्यापार की गतिविधियां स्थानीय उत्पादों एवं उत्तराखंड की संस्कृति प्रदर्शित की जाती है। स्थानीय व्यापारियों को व्यापार का एक मंच प्राप्त होता है एवं स्थानीय उत्पाद को बढ़ावा मिलता है। जिससे लोगों के कौशल के बारे में जानकारी प्राप्त होती है।
जौलजीबी का मेला कब मनाया जाता है. Jauljibi Mela Kyu Manaya Jata Hai
उत्तराखंड का प्रसिद्ध जौलजीबी का मेला हर वर्ष 14 नवंबर को यानी कि बाल दिवस के शुभ अवसर पर आयोजित किया जाता है। काली एवं गोरी नदी के संगम पर लगने वाले इस मेले के संदर्भ में एक मुख्य तथ्य प्रदर्शित होता है कि इस मेले में नदी का स्नान महत्वपूर्ण माना जाता है। स्कंद पुराण के अनुसार कैलाश मानसरोवर की यात्रा करने वाले हरे की आरती काली एवं गौरी नदी के संगम पर स्नान जरूर करते हैं।
नवंबर माह में यह मेला बड़ी ही धूमधाम और आस्था भाव के साथ आयोजित किया जाता है। इसमें सभी स्थानीय लोग अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं। मेले में मुख्य रूप से उत्तराखंड की संस्कृति से संबंधित सांस्कृतिक कार्यक्रम नाच गाना एवं नाट्य कला का प्रदर्शन देखने को मिलता है।
जौलजीबी मेले का इतिहास. Jauljibi Mela Mele Ka Itihas
दोस्तों जौलजीबी मेले के बारे में तो हम जान चुके हैं लेकिन सबसे महत्वपूर्ण तथ्य जौलजीबी मेले का इतिहास के बारे में जानना भी है। क्योंकि हम सभी लोग जानते हैं कि उत्तराखंड में मनाए जाने वाले किसी भी लोक पर्व एवं मेले के पीछे कोई ना कोई ऐतिहासिक तथ्य जरूर छुपा होता है जिसकी वजह से मेलों एवं त्योहारों का आयोजन किया जाता है।
ठीक उसी तरह से जौलजीबी मेला के बारे में जानकारी प्राप्त होती है कि जौलजीबी मेला का प्रारंभ सर्वप्रथम श्रेया पाल तालुकदार स्वर्गीय गजेंद्र बहादुर पाल को जाता है। यह अस्वकोट के तालुकदार थे इन्होंने ही 1914 में जौलजीबी मेला का प्रारंभ किया। जौलजीबी मेला प्रारंभ करने के पीछे मुख्य कारण भारत एवं चीन और नेपाल के बीच व्यापार को बढ़ावा देना था। जौलजीबी स्थान पर लगने वाले इस मेले के माध्यम से स्थानीय व्यापारियों को व्यापार करने के लिए एक मंच प्राप्त होता है जिससे वह अपने व्यापार को बढ़ा सकते हैं साथ ही इस मेलें के माध्यम से भारतीय संस्कृति एवं परंपराओं को एक सूत्र में पिरोया जाता है।
जौलजीबी मेला F&Q
Q – जौलजीबी का मेला क्यों मनाया जाता है।
Q – जौलजीबी मेला की शुरुआत
Q – जौलजीबी का मेला कब मनाया जाता है
Q – जौलजीबी का मेला कहां लगता है
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