हेलो दोस्तों उत्तराखंड के आज के नए लेख में। आज के इस लेकर माध्यम से हम आप लोगों के साथ बद्रीनाथ मंदिर का इतिहास (History of Badrinath Temple) एवं बद्रीनाथ मंदिर के बारे में जानकारी देने वाले हैं। जैसा कि हम सभी लोग जानते हैं कि देवभूमि उत्तराखंड प्राचीन काल से ही दिव्य आत्माओं का निवास स्थान रही है और प्राचीन काल से ही उत्तराखंड को देवों की भूमि के नाम से पहचाना जाता है। उन्हें पवित्र स्थलों में से एक है उत्तराखंड का बद्रीनाथ मंदिर जो कि अपने उत्कृष्ट वास्तु कला एवं बद्रीनाथ का इतिहास के लिए भी ( History of Badrinath Temple ) पहचानी जाती है। आज के इसलिए के माध्यम से हम आपको बद्रीनाथ मंदिर के बारे में जानकारी देने वाले थे आशा करते हैं कि आपको हमारा यह लेख पसंद आएगा इसलिए इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ना।
उत्तराखंड के चार धामों में से एक बद्रीनाथ मंदिर भगवान विष्णु के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। अलकनंदा नदी के बाएं तट पर और नारायण नामक दो पर्वत श्रृंखलाओं के बीच में स्थिति बद्रीनाथ मंदिर पंच बद्री समूह में से। उत्तराखंड के इतिहास में पंच केदार एवं पंच प्रयाग मंदिरों का समूह बड़ा ही पवित्र एवं धार्मिक स्थल माने जाते हैं।
ऋषिकेश से 214 किलोमीटर की दूरी पर उत्तर दिशा में स्थित है बद्रीनाथ मंदिर पूरी वर्ष भर में लाखों श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है। प्राचीन शैली में बना हुआ विशाल और आकर्षक है। समुद्र तल से बद्रीनाथ मंदिर की ऊंचाई ( Badrinath temple height) करीब 15 मीटर मापी गई है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार किवदंती है कि भगवान शिव जी ने बद्रीनारायण की छवि शालिग्राम के एक काले पत्थर पर खोजी थीं।
बद्रीनाथ मंदिर का निर्माण। who built badrinath temple
बद्रीनाथ मंदिर का निर्माण किसने किया इस प्रश्न का उत्तर जानने के लिए हमारे पाठकों के माध्यम से बार-बार टिप्पणियां की जा रही थी। उसी का उत्तर देने के लिए आज हमने यह लेख लिखा है आपके लिए। बद्रीनाथ मंदिर का निर्माण किसने किया और कब किया यह एक ऐतिहासिक और रहस्य में घटना बनी हुई है लेकिन इतिहास के कुछ पहलुओं के आधार पर ऐतिहासिक घटनाओं के आधार पर कहा जाता है की गढ़वाल के राजा ने 16वीं शताब्दी में बद्रीनाथ मंदिर की स्थापना की थी। जिसमें उन्होंने भगवान बद्रीनाथ की मूर्ति स्थापित की थी।
जबकि इतिहास की दूसरी घटनाओं के आधार पर यह भी किवदंति है की बद्रीनाथ मंदिर का निर्माण आदि गुरु शंकराचार्य ने आठवीं सदी में की थी। आदि गुरु शंकराचार्य की व्यवस्था के अनुसार मंदिर के पुजारी भारत के केरल राज्य से होते थे।
उत्कृष्ट वास्तु कला से निर्मित बद्रीनाथ मंदिर तीन भागों में विभाजित है जो कि गर्भ ग्रह, दर्शन मंडप और सभा मंडप है। प्रदेश के दौरान आप देख पाएंगे कि मंदिर के अंदर 15 मूर्तियां स्थापित है साथ ही मंदिर के अंदर भगवान विष्णु की एक ऊंची काले पत्थर के प्रतिमा विद्यमान है।
धरती का बैकुंठ के नाम से पहचाने जाने वाली बद्रीनाथ मंदिर में वन तुलसी की माला , चने की कच्ची दाल, गिरी का गोला और मिश्री प्रसाद के रूप में चढ़ाए जाते हैं।
लोक कथाओं में वर्णित है बद्रीनाथ धाम की स्थापना.History of Badrinath Temple
बद्रीनाथ धाम मंदिर की स्थापना का जिक्र पौराणिक लोक कथाओं में भी देखने को मिलता है पहले इस मंदिर में भगवान शिव का वास हुआ करता था एक बार भगवान विष्णु ध्यान मग्न होने के लिए कोई स्थान ढूंढ रहे थे इस दौरान भगवान नारायण इस केदार भूमि में आए और उन्हें यह जगह पसंद आने लगी.
लोक कथाओं के अनुसार किंवदंती है कि जब भगवान विष्णु वहां आए तो उन्होंने अलकनंदा नदी के पास पहुंचकर एक छोटे से बालक का रूप धारण किया और तेजी से रोने लगे । जिसे सुनकर भगवान शिव जी और माता पार्वती उनके पास आए और उनसे रोने का कारण पूछने पर भगवान विष्णु जी ने बताया कि उन्हें ध्यान योग के लिए यही जगह चाहिए इसके पश्चात भगवान भोलेनाथ ने उन्हें ध्यान करने के लिए यह जगह दे दी। वह वही जगह है जहां पर आज के समय में पवित्र बद्रीनाथ मंदिर स्थापित है। इस तरह से बद्रीनाथ मंदिर का इतिहास ( History of Badrinath Temple ) अपने आप में पौराणिक होने के साथ-साथ ऐतिहासिक भी माना जाता है।
बद्रीनाथ मंदिर का रहस्य क्या है. History of Badrinath Temple
दोस्तों क्या आप जानते हैं की बद्रीनाथ मंदिर का रहस्य क्या है आखिर क्यों ऐसा कहा जाता है कि बद्रीनाथ मंदिर में शंकर नहीं बजाया जाता। जानते हैं कुछ ऐसे अनसुनी रहस्यमई बातें जो की बद्रीनाथ मंदिर का रहस्य उजागर करते हैं।
लोक कथाओं के अनुसार यह हम कह सकते हैं कि लोगों के अनुसार केवदंती है की मां लक्ष्मी बद्रीनाथ धाम में तुलसी रूप में ध्यान कर रही थी तब वह ध्यान मांगने थी इस समय भगवान विष्णु ने शंखचूर्ण नामक राक्षस का वध किया था। इसलिए इस बात का ध्यान रखते हुए आज के समय में भी बद्रीनाथ मंदिर में शंकर नहीं बजाया जाता है।
बद्रीनाथ मंदिर की मान्यता, Belief of Badrinath Temple.
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जीव जानती है कि जब गंगा नदी धरती पर अवतरित हो रही थी तो गंगा नदी 12 धाराओं में बट गई थी इसलिए इस जगह पर मौजूद धारा अलकनंदा के नाम से प्रसिद्ध हुई और इस जगह को भगवान विष्णु ने अपना निवास स्थान बनाया जिसके कारण यह जगह बद्रीनाथ के नाम से विख्यात हुई।
बद्रीनाथ मंदिर की मान्यता यह भी बताई जाती है कि प्राचीन काल में यह स्थान खूबसूरत पेड़ों के पेड़ों से भरा हुआ रहता था इसलिए इस जगह का नाम बद्री वन पड़ गया।
बद्रीनाथ मंदिर की मान्यता यह भी बताई जाती है कि इस स्थान पर भगवान भोलेनाथ को ब्राह्मण हत्या से मुक्ति मिली थी जिस घटना को ब्राहकपाल के नाम से भी जाना जाता है।
दोस्तों यह था हमारा आज का लेख जिसमें हमने आपको श्रीनाथ मंदिर का इतिहास ( History of Badrinath Temple ) एवं मंदिर बद्रीनाथ मंदिर की मान्यता के बारे में जानकारी दी। करते हैं कि आपको बद्रीनाथ मंदिर का इतिहास के बारे में ( History of Badrinath Temple ) जानकारी प्राप्त हो गई होगी। यह ले कैसा लगा हमें कमेंट के माध्यम से बताएं और यदि आपको यह लेख अच्छा लगा है तो अपने दोस्तों और परिवार के साथ जरूर साझा करें।