बालेश्वर मंदिर चंपावत. Baleshwar Temple Champawat

Baleshwar Temple Champawat

हेलो दोस्तों स्वागत है आपका देवभूमि उत्तराखंड के आज की नई लेख में। इस लेख के माध्यम से हम आप लोगों के साथ बालेश्वर मंदिर चंपावत (Baleshwar Temple Champawat ) के बारे में जानकारी देने वाले। जैसा कि हम सभी लोग जानते हैं कि देवभूमि उत्तराखंड में अनेकों ऐसे तीर्थ स्थल है जो अपने पौराणिक कहानियों और इतिहास के लिए पहचाने जाते हैं उन्हें मंदिरों में से एक है चंपावत का बालेश्वर मंदिर जो की चंपावत के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है (Baleshwar Temple Champawat.) और अपनी पौराणिक कहानियों और इतिहास के लिए पहचाना जाता है। तो चलिए आज का लेख शुरू करते हैं।

बालेश्वर मंदिर चंपावत. Baleshwar Temple Champawat

उत्तराखंड के चंपावत शहर में स्थित बलेश्वर मंदिर पत्थरों की खूबसूरत नक्काशी से बना हुआ यह मंदिर भगवान शिव जी को समर्पित है। जी ने बालेश्वर के नाम से भी पहचाना जाता है। भगवान भोलेनाथ को समर्पित इस मंदिर के पास दो अन्य मंदिर बनाए गए हैं जिन्हें रत्नेश्वर मंदिर और चंपावती दुर्गा मंदिर के नाम से पहचाना जाता है। स्थापत्य कला के बेजोड़ रूप से बने इस मंदिर समूह में अलग-अलग मानवों की मुद्राएं एवं देवी देवताओं की सुंदर प्रतिमाएं बनाई गई है।

इस मंदिर समूह में आधा दर्जन से ज्यादा शिवलिंग स्थापित किए गए हैं मुख्य शिवलिंग स्फुटिक का है जो अपनी चमत्कारी शक्तियों के लिए पहचाना जाता है।

Baleshwar Temple Champawat

बालेश्वर मंदिर की स्थापना. Baleshwar Temple Champawat

बालेश्वर मंदिर की स्थापना (Baleshwar Temple Champawat.) के पीछे ऐतिहासिक पहलुओं के आधार पर कहां जा सकता है कि वाले संबंधित की स्थापना चंद्र शासको ने 13वीं शताब्दी में की थी। चंद्र शासको के दौरान चलने वाली वास्तु कला के माध्यम से इस बात की पुष्टि होती है कि बालेश्वर मंदिर की स्थापना भी चंद्र शासको के माध्यम से ही दिया गया था 1272 में इस खूबसूरत से मंदिर की स्थापना की गई थी।

बालेश्वर मंदिर की स्थापना का (Baleshwar Temple Champawat.) एक रहस्य यह भी बताया जाता है कि जब चंद्र शासको ने जगत नाथ निष्क्री के माध्यम से इस खूबसूरत मंदिर का निर्माण करवाया था तो वह बेहद प्रसन्न हुए। कहां जाता है कि चंद्र शासको को इस बात की चिंता हो रही थी कि कहीं उनके इस खूबसूरत से दिखने वाले मंदिर का दूसरा प्रारूप निर्माण न कर ले । इसलिए उन्होंने जगन्नाथ मिस्त्री के हाथ कटवा दिए। इस बात का जवाब देने के लिए मिस्त्री जगन्नाथ ने बालेश्वर मंदिर से लगभग 4 किलोमीटर की दूरी पर मायावती पैदल मार्ग में एक हथिया नौला का निर्माण किया था।

हाथी नौला एक हाथ से बनी खूबसूरत दिखने वाले निर्माण में से एक है। स्थानीय मान्यताओं के आधार पर बताया जाता है कि 1952 में भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण की देखरेख में बालेश्वर मंदिर है जिसे राष्ट्रीय विरासत स्मारक घोषित किया गया है।

दोस्तों यह था हमारा आज का लेख जिसमें हमने आपको बालेश्वर मंदिर के बारे में जानकारी दी आशा करते हैं कि आपको यह लेख पसंद आया होगा। यदि आपको यह लेख पसंद आया है तो अपने दोस्तों और परिवार के साथ जरूर साझा करें उत्तराखंड से संबंधित ऐसे ही जानकारी युक्त लेख पाने के लिए आप देवभूमि उत्तराखंड को जरूर फॉलो करें।

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