गौचर मेला उत्तराखंड.Gochar Mela Uttarakhand

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मेले उत्तराखंड की शान है देवभूमि की पहचान है मेलों के माध्यम से ही राज्य की संस्कृति को अनोखी एवं अलौकिक छवि प्राप्त होती है। नमस्ते दोस्तों स्वागत है आपका हमारे ब्लॉग के नए लेख में। आज हम आप लोगों के साथ उत्तराखंड का प्रसिद्ध मेला गौचर मेला के बारे में जानकारी साझा करने वाले हैं। आशा करते हैं कि आपको हमारा यह लेख जरूर पसंद आएगा।

गौचर मेला उत्तराखंड. Gochar Mela Uttarakhand

जैसा कि हम आपको पहले ही बता चुके हैं कि मेरे उत्तराखंड की शान है उत्तराखंड की पहचान है। मेलें त्यौहार एवं लोक पर्व के माध्यम से उत्तराखंड की संस्कृति एवं परंपराओं को एक अलग पहचान मिलती है। वरन यह मेले अपने पौराणिक इतिहास के साथ उस जगह के महत्व एवं उससे जुड़े लोगों के इतिहास के बारे में महत्व को जागृत करती है। उन्हीं प्रसिद्ध मेला में से एक हैं गोचर मेला जोकि उत्तराखंड के चमोली जिले में हर वर्ष बड़ी ही धूमधाम के साथ आयोजित किया जाता है। दरअसल यह मेला न केवल लोगों की भीड़ भाड़ एकत्रित करती है बल्कि लोगों की कौशल स्थानीय उत्पाद एवं उत्तराखंड की संस्कृति को भी जीवंत रखती है।

प्रसिद्ध बाजार मेला पंडित जवाहरलाल नेहरू के जन्म दिवस के अवसर पर हर दिन 14 नवंबर को आयोजित किया जाता है। 1 सप्ताह तक चलने वाला यह मेला हजारों लोगों को आकर्षित करता है। मेले के कुछ दिन पहले से ही स्थानीय लोगों एवं समिति द्वारा तैयारियां शुरू की जाती हैं

गौचर मेले का इतिहास. Gochar mele ka itihas

उत्तराखंड में मेले किसी खास महत्व एवं किसी खास समय पर ही आयोजित किए जाते हैं। यह वह समय होता है जब इन पर्वों से जुड़े लोगों की कुछ खास तिथियां होती है जिनमें वह स्मरण के तौर पर मेले के रूप में आयोजित करते हैं। उसी तरह से गाजर मेले के इतिहास के बारे में जानकारी मिलती है कि 1943 में अंग्रेज कमिश्नर मिस्टर बनोर्डी ने मेले की शुरुआत की थी। मेला शुरू करने का मुख्य उद्देश्य भारत और तिब्बत के व्यापार को बढ़ावा देना था। जिसके लिए हर वर्ष 14 नवंबर को बड़ी ही धूमधाम के साथ गोचर मेला आयोजित किया जाता है। यह मेला 1 सप्ताह तक आयोजित किया जाता है जिसमें स्थानीय व्यापारी अपने उत्पाद को लोगों तक पहुंचाते हैं।

सांस्कृतिक प्रदर्शन है गौचर मेला. Gochar mela uttarakhand

गोचर मेला आज के समय में न केवल एक मेले की तरह आयोजित होता है। बल्कि लोगों के कौशल को परखने एवं स्थानीय उत्पाद को बढ़ावा देने के लिए यह एक आधुनिक माध्यम बना हुआ है। जहां एक तरफ यह मेले उत्तराखंड की सांस्कृतिक छटा को प्रदर्शित करते हैं ठीक उसी प्रकार से यहां स्थानीय उत्पाद को भी बढ़ावा देते हैं । गोचर मेले में सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं जिनके माध्यम से उत्तराखंड संस्कृति प्रदर्शन को एक मंच मिल जाता है। मेले के कार्यक्रमों में हिस्सा लेने वाले सभी लोग उत्तराखंड के पारंपरिक पोशाक में नजर आते हैं जो कि इस मेले के सौंदर्य को और ज्यादा आकर्षक बनाते हैं। स्थानीय लोगों की कौशल से बने उत्पाद जैसे कि ऊनी वस्त्र, खिलौने, औजार, एवं स्थानीय उत्पाद जैसे कि शहद, जलेबी, संतरे, स्थानीय दालें प्रमुख है। व्यापारी इन सभी उत्पादों का व्यापार किया करते हैं जो कि कहीं ना कहीं उत्तराखंड संस्कृति के अंग है और उन के माध्यम से उत्तराखंड की संस्कृति को एक अलग पहचान मिलती है।

गौचर मेले से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले सवाल

Q- गोचर मेला क्या है?

Ans – गोचर उत्तराखंड का एक प्रसिद्ध मेला है जोकि उत्तराखंड के चमोली जिले में हर वर्ष 14 नवंबर को बड़ी ही धूमधाम के साथ आयोजित किया जाता है। जिसमें हजारों की संख्या में लोग पधार कर मेले के आकर्षक का आनंद लेते हैं।

Q – गोचर मेला कब है 2023 ?

Ans – गोचर मेला 2023 में 14 नवंबर को है। यह मेला हर वर्ष बड़ी ही धूमधाम के साथ आयोजित किया जाता है। जिसमें यहां के लोग स्थानीय उत्पाद के साथ अपने कौशल को प्रदर्शित करते हैं।

Q – गोचर मेला कब से प्रारंभ हुआ।

Ans – प्रसिद्ध गोचर मेले की शुरुआत सन 1943 से प्रारंभ हुआ। जिसे अंग्रेज कमिश्नर मिस्टर बनोर्डी द्वारा आयोजित किया गया था। मेले का मुख्य मकसद भारत और तिब्बत के व्यापार को बढ़ावा देना था।

Q- गोचर मेला क्यों आयोजित किया जाता है।

Ans – जैसा कि हम आपको पहले भी बता चुके हैं कि मेरे उत्तराखंड की शान होते हैं उत्तराखंड की संस्कृति का अंग होता है इसलिए मेलों का आयोजन पूरी धूमधाम के साथ किया जाता। हालांकि यह मेलें ऐतिहासिक एवं पौराणिक महत्व से जुड़े होते हैं।

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